होम |
दुनिया | ‘चंदा मामा’ के घर कब पहुंच पाएगी जापान की बुलेट ट्रेन ?
‘चंदा मामा’ के घर कब पहुंच पाएगी जापान की बुलेट ट्रेन ?
सदियों से इंसान चांद को लेकर सपने देखता रहा है, लगता है वो सपना पूरा होने का समय नजदीक आता जा रहा है। इसी सपने को पूरा करने के लिए कई लोगों ने चांद पर ज़मीन भी ख़रीद रखी है। लेकिन जापान ने जो ऐलान किया है, उसके बाद शायद भूमि इंटरनेशनल लूनर लैंड्स रजिस्ट्री चांद पर ज़मीन के दाम बढ़ा देगी। उसके प्लॉट चांद के 'सी ऑफ मसकोवी' में है, जहां तक अभी कोई जा नहीं पाया है।
जापान का दावा है कि वो धरती से लेकर चांद के बीच बुलेट ट्रेन चलाने की योजना पर काम शुरू कर चुका है। सोचिए भारत में अभी बुलेट ट्रेन शुरू भी नहीं हो पाई है, लेकिन जापान पहले चांद पर और फिर वहां से मंगल ग्रह तक बुलेट ट्रेन ले जाने का दावा कर रहा है। हालांकि अभी तक किसी ने उसके दावे को खारिज नहीं किया है, क्योंकि उसका जो आइडिया है, वो पहली नजर में दमदार दिखता है।
एस्ट्रोनोट नील आर्मस्ट्रॉन्ग पहले इंसान थे, जिन्होंने चांद की सतह पर 20 जुलाई 1969 को कदम रखा. उनके अलावा भारत के राकेश शर्मा सहित 11 लोग और हैं, जिन्होंने चांद की जमीन को छुआ है। पिछले 50 साल में चांद पर इंसान को भेजने की योजना में बहुत ज़्यादा काम इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि इसका बजट बहुत ज़्यादा होता है और कई देशों को लगने लगा है कि बजट की तुलना में फायदा न के बराबर मिलता है। हालांकि अमेरिका, रूस और चीन ने दोबारा मिशन चांद पर काम शुरू कर दिया है, लेकिन इस बीच जापान ने तो धमाका ही कर दिया। अब तक लोग एयरक्राफ्ट से जाते थे, जापान सीधे बुलेट ट्रेन ले जाएगा।
तो क्या है जापान की पूरी योजना और कब तक ये संभव हो सकता है, आइये समझते हैं। जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कंस्ट्रक्शन ने जो बुलेट ट्रेन चलाने का ऐलान किया है, उसके मुताबिक वो धरती से चांद के बीच ग्लास का आर्टिफिशियल स्पेस हैबिटेट बनाएंगे। यह एक इंटरप्लैनेटरी ट्रांसपोर्टेशन सिस्टम होगा, जिसे नाम दिया गया है हेक्साट्रैक।
मैगलेव बुलेट ट्रेनों में इस्तेमाल होने वाली इलेक्ट्रोमैगनेटिक तकनीक से 15 मीटर लंबी 6 कोच वाले हैक्साकैप्सूल चलेंगे, जिनको स्पेस एक्सप्रेस नाम दिया जाएगा। स्पेस एक्सप्रेस के पहले और आखिरी कोच में राकेट बूस्टर्स लगे होंगे, जो इसको स्पीड देंगे।
ये पूरी तरह एयर पैक्ड होगा, इसके अंदर का सिस्टम बिल्कुल धरती जैसा रखा जाएगा। आमतौर पर कम ग्रैविटी वाले स्थानों पर इंसान की मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, इसलिए इसमें इस बात का पूरा इंतजाम किया जाएगा कि गुरुत्वाकर्षण बल धरती जैसा ही रहे। इसी हेक्साट्रैक। कैप्सूल के अंदर चलती बुलेट ट्रेन चांद तक पहुंचेगी। जाहिर है चांद पर भी जो इंसानी बस्तियां होंगी, वो भी एक बन्द मॉल जैसी होंगी।
चांद पर बनने वाले ग्लास कॉलोनी का नाम होगा लूनाग्लास और मंगल पर बनने वाली कॉलोनी का नाम होगा मार्सग्लास होगा। इस ग्लास कॉलोनी में रहने के दौरान आपको स्पेससूट पहनने की जरूरत होगी, लेकिन अंदर रहने के लिए शायद ये जरूरी न हो। वैज्ञानिकों ने उम्मीद जताई है कि 21वीं सदी के दूसरे हिस्से में इंसान चांद और मंगल ग्रह पर रहना शुरू कर सकते हैं।