शनिवार, 10 जून 2023 | 06:10 IST
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यूपी में औवेसी ने अखिलेश को जबरदस्त नुकसान पहुंचाया



यूपी नगर निकाय चुनाव के दौरा AIMIM प्रमुख असदुद्दीन औवेसी का यही अंदाज रहा। वे मुसलमानों के मुद्दे इस आक्रामकता के साथ उठाते हैं, मुसलिमों को उनमें अपना रहनुमान दिखने लगता है। शायद यही कारण है कि ओवैसी की पार्टी AIMIM ने बिहार विधानसभा चुनाव जैसा खेल यूपी निकाय चुनाव में भी कर दिया है। खुद भले नहीं जीत सकी लेकिन सपा और बीएसपी का खेल कई जगह पर बिगाड़ दिया है।  मेरठ में तो मेयर सीट पर एआईएमआईएम के प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे। यहां एसपी के तीसरे नंबर पर पहुंच जाने से अखिलेश भी हैरान हैं। ज़ाहिर है मुसलिम वोट कटने से बीजेपी ने अपनी फंसी सीट निकाल ली। 
कुछ इसी तरह 2019 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान हुआ था। ओवैसी की पार्टी ने वहां मुसलमानों का वोट बांटकर पांच सीटें झटक ली थीं। कई सीटों पर राजद को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी जीत गई थी। इससे राजद अकेले बहुमत में आते-आते रह गई थी। पश्चिमी यूपी की कई सीटों पर मुसलमानों का वोट कांग्रेस, बसपा, सपा और एआईएमआईएम में बंटने का सीधा लाभ भाजपा को मिला है। 
जिस तरह से औवेसी की पार्टी धीरे धीरे एसपी का मुसलिम यादव समीकरण तोड़ रही है, उससे बीजेपी की बांछें खिली हुई हैं। पिछले कई दशकों में जो काम बीएसपी, बीजेपी और कांग्रेस नहीं कर पाई, वो काम असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने कर दिखाया। ओवैसी ने निकाय चुनाव में सपा के मुस्लिम वोटरों में जबरदस्त सेंध लगाई है। मुस्लिम वार्डों में एआईएमआईएम ने सपा को सीधी टक्कर दी है। सपा की जीत में सबसे बड़ी बाधक भी बनी है, जिसका नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा है। इसके कारण कम से कम 50 वार्ड ऐसे हैं, जहां सपा जीतते जीतते हार गई। 
कांग्रेस, सपा और बीएसपी मुस्लिम वोटरों की राजनीति करती हैं। मुस्लिम वोटर भी इन्हीं तीनों पार्टियों को वोट करते हैं, लेकिन बीते कुछ वर्षों में देखा गया है कि मुस्लिम वोटर कांग्रेस, सपा और बीएसपी से दूरी बना रहा है। मुस्लिम वोटर एआईएमआईएम को एक बेहतर विकल्प के रूप में देख रहे हैं। इसके पीछे मुख्य यह भी मानी जा रही है कि असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम समुदायों के मुद्दो पर खुलकर बोलते हैं। उनके हितों की बात करते हैं। साथ ही उनकी बातों को मजबूती से रखते हैं। जिसकी वजह से यूपी का मुस्लिम वोटर सपा समेत अन्य राजनीतिक पार्टियों से दूरी बना रहे हैं।
रामपुर में आज़म खान का मामला हो, कानपुर में इरफान सोलंकी का माला हो- इन सभी में समाजवादी पार्टी कोई मदद नहीं कर पाई। मुस्लिम समाज को लग रहा है कि समाजवादी पार्टी उनके हितों की रक्षा करने में सक्षम नहीं है। सपा मुखिया अखिलेश यादव विधायक इरफान से मिलने के लिए कानपुर जेल पहुंचे तो इरफान को 400 किलोमीटर दूर महाराजगंज जेल में भेज दिया गया। आरिफ के दोस्त सारस से मिलने के लिए अखिलेश पहुंचे तो आरिफ से सारस को जुदा कर दिया गया। इरफान, आजम खान और अब्दुल्ला आजम खान के मामलों में अखिलेश यादव कुछ नहीं कर पाए, जिससे मुस्लिम समाज में सपा के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है। जिसकी वजह से मुस्लिम वोटर विकल्प के रूप में एआईएमआईएम की तरफ देख रहा है।
यूपी के कानपुर की बात की जाए तो निकाय चुनाव में एआईएमआईएम ने शानदार प्रदर्शन किया है। एआईएमआईएम ने सबसे ज्यादा नुकसान यहां सपा का किया है,  जिसका सीधा फायदा बीजेपी ने उठाया है। घाटमपुर नगर पालिका में अध्यक्ष के चुनाव में एआईएमआईएम प्रत्याशी गजाला तबस्सुम ने सपा की चंद्रक्रांति सचान को 84 वोटों से हराकर चौंका दिया।  घाटमपुर बीजेपी का किला माना जाता है, कुर्मी वोटरों का गढ़ कहा जाता है। घाटपुर विधानसभा सीट से बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) से सरोज कुरील विधायक हैं। इसके साथ अकबरपुर लोकसभा सीट से देवेंद्र सिंह सांसद हैं। इसके बाद भी निकाय चुनाव में एआईएमआईएम की गजाला तबस्सुम की जीत ने सभी राजनीतिक पार्टियों के होश उड़ा दिए हैं।
आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन चीफ असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी से 2017 के निकाय चुनाव में भी एक पार्षद ने जीत दर्ज की थी। वहीं, इस निकाय चुनाव में भी एक पार्षद ने जीत दर्ज की है। कर्नलगंज के वार्ड-110 से मो. नौशाद ने जीत दर्ज की है। वहीं, एआईएमआईएम की महापौर प्रत्याशी शहाना परवीन को 16,372 वोट मिले हैं। शहाना परवीन को ये वोट मुस्लिम इलाकों से मिला है, जिसका नुकसान कांग्रेस और सपा को उठाना पड़ा है। जिसका सीधे तौर पर बीजेपी ने फायदा उठाया है। इसके साथ ही एआईएमआईएम का वोट प्रतिशत भी बढ़ा है। मुस्लिम क्षेत्रों में ओवैसी की पार्टी तेजी से विस्तार कर रही है। इस बार 3 नगर पालिका अध्यक्ष और 2 नगर पंचायत प्रमुख के पद पर कब्जा जमाकर ओवैसी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश की सियासत में बड़ा खेल किया है. एआईएमआईएम ने निकाय चुनाव में नगर निगम पार्षद की 19, नगर पालिका परिषद अध्यक्ष की 3, नगर पालिका परिषद सदस्य की 33, नगर पंचायत अध्यक्ष की 2 और नगर पंचायत सदस्य की 23 सीटों पर जीत दर्ज की. एआईएमआईएम की ओर से मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण पर अखिलेश यादव की चिंता स्वाभाविक है। 
निकाय चुनाव में एआईएमआईएम ने कई मुस्लिम वार्डों में सपा को सीधी टक्कर दी, जिसमें सपा प्रत्याशियों ने जीत तो दर्ज की, लेकिन बहुत मामूली बढ़त के साथ। इसके साथ ही कई वार्डों में एआईएमआईएम ने सपा का समीकरण बिगाड़ दिया। वोट कटवा का काम करने की वजह से वार्ड-प्रत्याशियों को हार का भी सामना करना पड़ा। एआईएमआईएम के वार्ड प्रत्याशी कई सीटों पर दूसरे नंबर पर रहे। इसके बाद एसपी के अंदरखाने चर्चा है कि अगर औवेसी की पार्टी से गठबंधन नहीं किया तो वो हर सीट पर आगे भी नुकसान पहुंचाएंगे। औवेसी भी गठबंधन चाहते हैं, लेकिन अखिलेश उसको ज़्यादा सीटें देना नहीं चाहती, ऐसे में दोनों की दोस्ती मुश्किल लग रही है। लेकिन कुछ भी बीजेपी की बांछें खिली हुई हैं। 

 



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