मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024 | 05:47 IST
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पहाड़ में जगह जगह उग जाता है ये सुपर फूड, कंटीले पत्तों से कैंसर, 5 जानलेवा बीमारियां का इ


अगर आप कभी उत्तराखंड या हिमाचल जैसे पहाड़ी राज्यों में घूमने गए होंगे तो शायद आपको मालूम होगा कि वहां एक जंगली घास होती है जिसे 'बिच्छू घास' कहा जाता है। अगर आप इसे जानते हैं, तो आपको यह भी अच्छी तरह पता होगा कि अगर गलती से भी यह आपको टच हो जाए, तो उस हिस्से में तेज जलन और खुजली होने लगती है और यहां तक कि त्वचा पर फफोले भी पड़ जाते हैं। कुमाऊं में इसको सिसौंण और गढ़वाल में कंडाली कहते हैं। 
इस घास का साइंटिफिक नाम अरर्टिका डाइओका है और अंग्रेजी में इसे स्टिंगिंग नेटल कहा जाता है। इसे स्थानीय भाषा में सिसौंण, बिच्छु बूटी या बिच्छू घास कहा जाता है। इसका पौधा होता है जिस पर हरे रंग के पत्ते आते हैं और इस पूरे पौधे पर छोटे-छोटे कांटे लगे होते हैं। इसके संपर्क में आने से आपको ठीक वैसी ही जलन होती है जैसे किसी बिच्छु ने काट लिया हो इसलिए इसे बिच्छु घास कहा जाता है। आपके लिए यह जंगली घास हो सकती है लेकिन वहां के लोग इसे सब्जी के रूप में खाते हैं और इसकी चाय बनाकर पीते हैं। चलिए जानते हैं इसके क्या-क्या फायदे हैं
यह जंगली घास शरीर के लिए जरूरी पोषक तत्वों का खजाना है। इसमें विटामिन ए, सी और के, मैग्नीशियम, फास्फोरस, पोटेशियम और सोडियम जैसे मिनरल्स, एमिनो एसिड्स और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं।
इस सब्जी में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं, जो आपकी कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्स से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करते हैं। फ्री रेडिकल्स से होने वाले डैमेज से उम्र के साथ कैंसर सहित कई गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ता है। एक अध्ययन के अनुसार, बिच्छु घास का रस खून में एंटीऑक्सीडेंट लेवल को बढ़ाता है।
बिच्छू घास में विभिन्न प्रकार के यौगिक होते हैं जो सूजन को कम कर सकते हैं। जानवरों और टेस्ट-ट्यूब अध्ययनों में पता चला कि बिच्छु घास ने सूजन के लेवल को कम कर दिया था। एक अन्य अध्ययन में पता चला कि इस घास से बनी क्रीम लगाने से गठिया जैसी सूजन में राहत मिल सकती है।

 



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