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उत्तराखंड | सिरकोट मंदिर के पत्थर को उठा लिया तो मनमांगी मुराद, पूरा इतिहास जानिए
सिरकोट मंदिर के पत्थर को उठा लिया तो मनमांगी मुराद, पूरा इतिहास जानिए
मलयनाथ स्वामी जी को समर्पित सीराकोट मन्दिर पिथौरागढ़ जनपद के डीडीहाट में है।
इस मंदिर को सीराकोट का मंदिर भी कहते हैं जिसे स्थानीय भाषा में सिरकोट मंदिर कहते हैं. मलयनाथ को शिव का ही एक अवतार माना गया है। मलयनाथ, नाथपंथ के गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे। मलयनाथ के मंदिर प्रांगण में एक गोल और बड़ा पत्थर है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इसे उठा लेता है, उसकी मनोकामना पूर्ण होती है।
यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 1640 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। आज जिसे सीराकोट कहा जाता है, उसे राजा कल्याणमल के 1443 के ताम्रपत्र में कालकोट कहा गया है।
बताते हैं कि ये मंदिर चंद राजा ने चौदहवीं सदी में बाद बहादुर चंद ने राजकोट में स्थापित किया था। उसी समय मलयनाथ प्रकट हुए। उस समय यहां की जनसंख्या न के बराबर थी। चंद राजा ने यहां की जनता को बसाया और मंदिर के पुजारी पानुजी को नियुक्त किया गया और मंदिर की देखरेख के लिये मणपति डसीला लोगों को नियुक्त किया गया. इस मंदिर के शिला लेख इलाके के लोग चढ़ाते हैं. यहां हर साल असोज की नवरात्रि चतुर्दशी को मेला आयोजित किया जाता है और मंदिर में पुजारी हर रोज भोग लगाते हैं. इस मंदिर में एक चंद राजा के समय से पानी का नौला भी है जिस पानी को सदा भोग के और सफाई के लिये प्रयोग में लाया जाता है।
इस मंदिर में डीडीहाट से होकर जा स कते हैं। डीडीहाट, पिथौरागढ़ से करीब पचास किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐतिहासिक नगर है। डीडीहाट, सीरा राज्य की राजधानी सिरकोट के समीप बसा है. यह क्षेत्र सीराकोट के रिका मल्ल राजाओं के अधीन रहा।
राजा हरी मल्ल के समय तक डीडीहाट डोटी साम्राज्य के अधीन रहा था. जब रुद्र चंद के बेटे भारती चंद ने डोटी युद्ध जीता तो डीडीहाट को चंद साम्राज्य का हिस्सा बना लिया.
डीडीहाट में डीडी शब्द कुमाऊनी के डांड और हाट शब्द से बना है. डांड का अर्थ एक छोटी चोटी और हाट का अर्थ बाजार से है. कहा जाता है कि सीराकोट के राजा ठंडियों में यहां धूप सेंकने आते थे और यही एक समतल मैदान पर बाजार भी लगता था. चंद राजाओं ने यह बाजार गंगोलीहाट में स्थानातंरित किया.
डीडीहाट से तीन किमी की दूरी पर ही ये मलयनाथ का भव्य मंदिर स्थित है।