होम |
विचार | सिद्धारमैया ने कर्नाटक सीएम की रेस में कैसे बाजी 'पलटी' ?
सिद्धारमैया ने कर्नाटक सीएम की रेस में कैसे बाजी 'पलटी' ?
कर्नाटक में 13 मई को चुनाव नतीजे आए। कांग्रेस ने बंपर बहुमत के साथ दक्षिण के द्वार से बीजेपी को बाहर कर दिया। इसके साथ ही शुरू हो गई
सीएम की कुर्सी पर कब्जे की रस्साकशी। कांग्रेस में सवाल था कि कर्नाटक की कुर्सी पर किसे बिठाया जाए? डीके शिवकुमार या सिद्धारमैया। एक तरफ ऐसा चेहरा जिसने अहिंदा समीकरण के जरिए कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की। दूसरी तरफ ऐसा शख्स जो कांग्रेस के लिए हर मुश्किल घड़ी में संकटमोचक रहा है। एक ऐसा शख्स जो कहता है कि मैंने सोनिया जी से कर्नाटक दिलाने का वादा किया था और पूरा किया। रविवार से शुरू हुई कशमकश बुधवार आधी रात तक जारी रही।आधी रात तय किया गया कि कर्नाटक का सेहरा किसके सिर बांधना है। आखिर सिद्धारमैया को कर्नाटक का अगला मुख्यमंत्री चुना गया। सिद्धारमैया के समर्थकों ने जश्न मनाना भी शुरू कर दिया। मजबूरी में ही सही डीके शिवकुमार कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री पद के लिए राजी हो गए हैं। शिवकुमार पहले ढाई साल के लिए सीएम पद चाहते थे। शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच पेंच फंसा था।
आइये समझ लेते हैं कि सिद्धारमैया कांग्रेस के लिए क्यों जरूरी हैं ?
कर्नाटक में एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने जा रहे सिद्धारमैया
कई बार मंत्री, डिप्टी सीएम और 2013 में पांच साल तक सीएम रह चुके हैं।
दूसरी ओर कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार ने जबरदस्त मेहनत करके पार्टी को खड़ा किया। हर संकट के समय वे गांधी परिवार के साथ खड़े रहे। इस लड़ाई में उनके खिलाफ दर्जनों केस हुए, लेकिन फिर भी वे डिगे नहीं। लेकिन सिद्धारमैया इसलिए ज्यादा बड़े दावेदार हैं, क्योंकि कांग्रेस अभी अहिंदा समीकरण यानी अल्पसंख्यक, ओबीसी और दलित को लोकसभा चुनाव में भुनाना चाहती है। 2024 का लोकसभा चुनाव एक साल के अंदर होना है। कर्नाटक में 28 लोकसभा सीटें हैं। कांग्रेस अहिंदा के मजबूत सामाजिक समीकरण से 20 से ज्यादा सीटों पर कब्जा चाहती है। अगर सिद्धारमैया की जगह शिवकुमार को कुर्सी दी जाती तो यह समीकरण बिखर भी सकता है।इसी समीकरण की बदौलत पांच दशक पहले कांग्रेस ने कर्नाटक की सत्ता पर कब्जा जमाया था और सिद्धारमैया ने इसे मजबूत किया है।
एक बात और सिद्धारमैया के पक्ष में जाती है वह है- उनकी मास अपील, खासकर ग्रामीण इलाकों में। सिद्धारमैया कुरुबा यानी गड़रिया जाति से आते हैं, जिसका राज्य में करीब 9 प्रतिशत का वोट शेयर है। पिछड़े तबके के बीच सिद्धारमैया का अच्छा आधार है। सिद्धारमैया किसानों के बीच भी जबरदस्त लोकप्रिय हैं। इसके अलावा वे 2013 से 2018 तक
मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले केवल दूसरे मुख्यमंत्री थे। इससे पहले देवराज उर्स ने 70 के दशक में अपना कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा किया था। 2013 में कांग्रेस को जीत दिलाने के बाद सिद्धारमैया सरकार ने पहली कैबिनेट मीटिंग में अन्न भाग्य योजना के तहत हर महीने पांच किलो चावल की योजना शुरू की। इसे बाद में बढ़ाकर सात किलो कर दिया गया था। सिद्धारमैया बतौर वित्त मंत्री राज्य के 13 बजट पेश कर चुके हैं। उनकी आर्थिक समझ का विरोधी भी लोहा मानते हैं। यहां तक पिछली विधानसभा में नेता विपक्ष के रूप में उनके बजट भाषण को विपक्षी बीजेपी विधायक भी बहुत ध्यान से सुनते थे। बारे में सोच रहा है।
सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान ने शुरू के तीन साल सिद्धारमैया और बाद के दो साल डीके शिवकुमार को सीएम बनाने का फॉर्मूला दिया है।
लेकिन राजस्थान में यही फॉर्मूला फेल हो गया, वहां अशोक गहलोत पहले तो राजी हो गए, लेकिन फिर पलट गए। राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए
सचिन पायलट ने पिछले चुनाव में जबरदस्त मेहनत की और जब सरकार आई तो अनुभवी अशोक गहलोत को सीएम और पायलट को डिप्टी बनाया गया। सरकार में पायलट की चलती ही नहीं थी, डिप्टी सीएम होने के बावजूद अधिकारी उनकी सुनते नहीं थे, उनकी शिकायत पर गहलोत अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं करते थे। इसलिए उन्होने बगावत का रास्ता अपना लिया। कर्नाटक की राजनीति भी इसी ओर जाती दिखाई दे रही है, जहां डी के शिवकुमार भी भविष्य के सचिन पायलट बन सकते हैं।
जिस डीके शिवकुमार ने पिछले चार साल से जीतोड़ मेहनत करते हुए कांग्रेस की जीत का मार्ग प्रशस्त किया, पार्टी उसकी अनदेखी भी नहीं कर सकती। पार्टी को यह अच्छी तरह पता है कि शिवकुमार जैसा संसाधन संपन्न नेता और कुशल रणनीतिकार उनके लिए हमेशा कारगर होगा। शिवकुमार के लिए सबसे बड़ा अड़ंगा उनके ऊपर दर्ज मामलों की फेहरिस्त है। इसमें ईडी, सीबीआई से लेकर आयकर का शिकंजा कस सकता है। सितंबर 2019 में ईडी ने पूछताछ के बाद उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में अरेस्ट किया था। इसी केस में उन्हें 50 दिन तिहाड़ जेल में काटने पड़े।
आयकर विभाग ने दावा किया था कि 429 करोड़ की बेहिसाब रकम भी इस छापेमारी में पता चली। शिवकुमार ने जीत के बाद रोते हुए इसका जिक्र भी किया था कि जब मैं जेल में था तो सोनियाजी मुझसे मिलने आई थीं और मैंने उन्हें कर्नाटक जिताने का वादा किया था।
फिलहाल भारी मन ने डीके शिवकुमार ने डिप्टी सीएम की कुर्सी संभाल ली है, लेकिन आगे अगर कांग्रेस आलाकमान ने उनकी बात नहीं मानी तो वे सचिन पालयट की राह पर जाते हुए पार्टी तोड़कर बीजेपी के सपोर्ट से सीएम भी बन सकते हैं। इसलिए कर्नाटक में कांग्रेस को बहुत संभल कर चलना होगा।