मंगलवार, 5 दिसम्बर 2023 | 01:35 IST
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2050 में डूब जाएगी मुंबई


इन दिनों मौसम में नाटकीय बदलाव देखा जा रहा है। जनवरी में काफी ठंड पड़ने के बावजूद इस महीने असामान्य रूप से गर्मी शुरू हो गई है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी WMO द्वारा प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र के स्तर में लगातार वृद्धि भारत और चीन के साथ-साथ बांग्लादेश, नीदरलैंड, मालदीव और अन्य देशों के लिए एक बड़ा खतरा है। रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और देश के अन्य तटीय शहरों पर बड़े पैमाने पर इसका बुरा असर पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी WMO की रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र का स्तर 2013 और 2022 के बीच औसतन 4.5 मिलीमीटर प्रति वर्ष बढ़ा है। यानी समंदर के लगातार बढ़ते जाने के मतलब है कि 2050 तक समंदर के किनारे बसे दुनिया के कई शहर डूब जाएंगे। ये खतरा कितना बड़ा है, इसे समझना है तो जान लीजिए 1901 और 1971 के बीच समंदर का पानी जितना ऊपर आया है, उससे तीन गुना ज़्यादा ज़मीन पानी में समा जाएगी। 
इसका सीधा कारण है लगातार बढ़ रही ग्लोबल वार्मिंग। अब सवाल उठता है कि क्या 2050 तक मालदीव से लेकर मुंबई तक डूबेंगे, क्यों तटीय इलाकों के समुद्र में समाने का हो रहा दावा?
वैसे भी फरवरी का महीना अभी खत्म भी नहीं हुआ है लेकिन गर्मी का पारा चढ़ना शुरू हो गया है। कई शहरों में तापमान 26 से 32 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। इसी बीच जलवायु परिवर्तन को लेकर आईं दो रिपोर्ट चर्चा में हैं। इनमें ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों की चेतावनी दी गई है। इनकी मानें तो आने वाले 27 वर्षों में मालदीव जैसे देश शायद दुनिया के नक्शे पर दिखाई नहीं दें। वहीं, भारत में चेन्नई और मुंबई जैसे तटीय शहरों के समुद्र में समाने का भी खतरा है। 
इन दिनों मौसम में नाटकीय बदलाव देखा जा रहा है। जनवरी में काफी ठंड पड़ने के बावजूद इस महीने असामान्य रूप से गर्मी शुरू हो गई है। पिछले हफ्ते के तापमान की बात करें तो 16 फरवरी को गुजरात के भुज में अधिकतम तापमान 40.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जिसने 19 फरवरी, 2017 से 39.0 डिग्री सेल्सियस के अपने पिछले रिकॉर्ड को तोड़ दिया। इसी तरह गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के विभिन्न अन्य क्षेत्रों में दिन का तापमान सामान्य से छह से नौ डिग्री सेल्सियस अधिक और अब तक के उच्चतम स्तर के करीब नापा गया है।
उधर भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने कोंकण और कच्छ क्षेत्रों के लिए अपना पहला हीटवेव अलर्ट जारी कर दिया है। हालांकि, यह अलर्ट सामान्य से बहुत पहले आया है, क्योंकि हीटवेव अलर्ट आमतौर पर मार्च में शुरू होते हैं। इसका सीधा मतलब है कि आने वाले दिनों में गर्मी तेजी से बढ़ेगी। 
फरवरी के महीने में देश के विभिन्न हिस्सों में बढ़ती गर्मी के दो अहम कारण हैं। पहला बड़ा कारण है पश्चिमी विक्षोभ। भारत में सर्दी पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति पर ज्यादातर निर्भर होती है। इनकी वजह से ही पहाड़ियों पर हिमपात होता है और मैदानी इलाकों में वर्षा होती है। इन गतिविधियों से मौसम में ठंडक आती है और नम मौसम के कारण तापमान सामान्य बना रहता है। इस साल जनवरी में हिमालय के ऊपर से गुजरने वाले पश्चिमी विक्षोभ कमजोर रहे लिहाजा मौसम शुष्क रहा है। लगातार मौसम शुष्क होने से तापमान बढ़ता जाता है।
जल्दी गर्मी आने का दूसरा सबसे प्रमुख कारण एंटी साइक्लोन है। गुजरात में जो एंटी साइक्लोन आमतौर पर मध्य अप्रैल के आसपास बनता था, वह इस बार जल्दी बन गया है। इसके कारण ही वसंत को अभी से ही गर्मियों में बदलते देख रहे हैं। इस साल भारत में एंटी-साइक्लोन का पहला उदाहरण फरवरी की शुरुआत में देखा गया जो बीते तीन वर्षों में और मजबूत हुआ है। 
एंटी साइक्लोनिक सर्कुलेशन का मतलब असल में हवा का बिखरना होता है। नाम के मुताबिक ही एंटी-साइक्लोन में हवा की दिशाएं साइक्लोनिक हवाओं की दिशा के विपरीत होती हैं। साइक्लोनिक सर्कुलेशन में कम दबाव (लो प्रेशर) का क्षेत्र बनता है और हवाएं आपस में मिलकर उठती हैं। वहीं, एंटी-साइक्लोनिक साइक्लोनिक सर्कुलेशन में उच्च दाब (हाई-प्रेशर) एरिया बनता है जिसमें हवाएं बिरखती हैं और नीचे गिरती हैं। एंटी साइक्लोन के बीच के हिस्से में हाई-प्रेशर के चलते एक तेज हवा का ब्लास्ट ऊपर से नीचे की तरफ होता है और गर्म हवाएं नीचे आती हैं। हवा पर दबाव ज्यादा होने की वजह से वह और गर्म होती है और उसकी नमी भी कम होती है।
जलवायु परिवर्तन से जुड़ी एक रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि विश्व में 50 राज्यों में मानव निर्मित ढांचे को सर्वाधिक जोखिम है। क्रॉस डिपेंडेंसी इनिशिएटिव (एक्सडीआई) द्वारा बनाई गई रिपोर्ट में भारत के नौ राज्यों में मानव निर्मित ढांचे को जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा खतरा बताया गया है। ये राज्य दुनिया के 50 सर्वाधिक जोखिम वाले राज्यों में शुमार हुए हैं। पाकिस्तान में हाल में आई बाढ़ से हुई तबाही को इस जोखिम का एक उदाहरण बताया गया है। भारत के यूपी, बिहार, पंजाब, उत्तराखण्ड समेत 14 राज्यों को भी ऐसे खतरों की जद में रखा गया है।
एक्सडीआई ने दुनिया के 2,600 राज्यों व प्रांतों को कवर कर यह रिपोर्ट साल 2050 को ध्यान में रखते हुए बनाई है। रिपोर्ट में मानव गतिविधियों और घरों से लेकर इमारतों तक यानी मानव निर्मित पर्यावरण को जलवायु परिवर्तन व मौसम के चरम हालात से नुकसान के पूर्वानुमान का प्रयास हुआ है। इसी आधार पर रैंकिंग की गई। यहां बाढ़, जंगलों की आग, लू, समुद्र सतह के बढ़ने जैसे खतरे बढ़ने का इशारा किया गया है।
 विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) द्वारा प्रकाशित हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र के स्तर में लगातार वृद्धि भारत और चीन के साथ-साथ बांग्लादेश, नीदरलैंड, मालदीव और अन्य देशों के लिए एक बड़ा खतरा है। रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता और देश के अन्य तटीय शहरों पर बड़े पैमाने पर प्रभाव दिखा रहा है।
संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी WMO की रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्र का स्तर 2013 और 2022 के बीच औसतन 4.5 मिलीमीटर प्रति वर्ष बढ़ा। एक खतरे के रूप में यह 1901 और 1971 के बीच हुई बढ़ोतरी से तीन गुना ज्यादा है।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब तेजी से दिख रहा है। 20वीं सदी की शुरुआत से ही समुद्र के स्तर में वृद्धि का खतरा बढ़ रहा है। 1901 और 1971 के बीच समुद्र के स्तर में औसत वार्षिक वृद्धि 1.3 मिमी प्रति वर्ष थी, जो 1971 और 2006 के बीच बढ़कर 1.9 मिमी प्रति वर्ष और 2006 और 2018 के बीच 3.7 मिमी प्रति वर्ष हो गई। रिपोर्ट की मानें तो 4.5 मिमी की वृद्धि अब तक की सबसे अधिक है। इसमें कहा गया है कि मुंबई, शंघाई, ढाका, बैंकॉक, जकार्ता, लागोस, काहिरा, लंदन, न्यूयॉर्क, लॉस एंजिल्स जैसे शहरों को समुद्र के स्तर में वृद्धि से सबसे ज्यादा खतरा है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि बढ़ते समुद्र स्तर से पता चलता है कि मालदीव जैसे निचले तटीय क्षेत्र 2050 तक डूब सकते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, यह लगभग तय है कि 21वीं सदी में वैश्विक औसत समुद्र-स्तर में वृद्धि जारी रहेगी। समुद्र के स्तर में वृद्धि भयंकर प्रभाव लाएगी। बढ़ते समुद्र का स्तर चिंता का कारण है क्योंकि इससे तटीय क्षेत्रों का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो सकता है। कहा गया है कि कम से कम विकसित और निम्न और मध्यम आय वाले देशों में तटीय शहरी क्षेत्रों के लोगों को भी विशेष प्रभावों और चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

 



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