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साहित्य | सावन के रुद्राभिषेक में इन 3 गलतियों से नहीं मिलता है फल
सावन के रुद्राभिषेक में इन 3 गलतियों से नहीं मिलता है फल
अगर आप हिन्दू धर्म की किताबें पढ़ते हैं तो आपने गीता प्रेस की कोई न कोई पुस्तक जरूर पढ़ी होगी और इसका नाम भी ज़रूर सुना होगा। अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर चुके सनातन साहित्य का प्रकाशन करने वाले इस संस्थान को पिछले दिनों एक बेवजह के विवाद में घसीटा गया।
मोदी सरकार ने जब गीता प्रेस गोरखपुर को साल 2021 का गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने का ऐलान किया तो कांग्रेस ने विरोध कर दिया। कांग्रेस का मानना था कि गीता प्रेस कोई सुधारवादी संस्था नहीं है और इसने हिन्दू धर्म को बढ़ावा देकर इसने ऐसा कोई सम्मान पाने वाला काम नहीं किया है. नेता जयराम रमेश ने गीता प्रेस को गांधी शांति पुरस्कार दिए जाने की तुलना सावरकर और गोडसे को पुरस्कृत करने से की है. उन्होंने ट्वीट में
लिखा, "यह फैसला असल में सावरकर और गोडसे को पुरस्कार देने जैसा है."
गीता प्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि वो केंद्र सरकार की ओर से दिए इस पुरस्कार को स्वीकार करेंगे लेकिन वो इसके साथ मिलने वाली एक करोड़ रुपये की राशि नहीं लेंगे.
दरअसल हिन्दी के कुछ वामपंथी आलोचकों, पत्रकारों और जातीय बुद्धिजीवियों के मन में गीता-प्रेस के प्रति जैसी नफ़रत भरी हुई है, उससे लगता है कि उनके पास यदि सत्ता होती तो वे गीता प्रेस पर कभी का बुलडोजर चलवा देते। अगर वो वाकई में हिन्दुस्तान में पिछले सौ सालों में गीता प्रेस का योगदान ठीक से जान जाते तो उन्हें अपने कथन पर शर्म आ सकती थी। आपने देश में तमाम रेलवे स्टेशनों की बुक स्टॉलों पर गीता प्रेस की पुस्तकें
बिकते देखी होंगी। इसका संचालन कोलकाता स्थित गोविंद भवन करता है. गीता प्रेस के प्रोडक्शन मैनेजर लालमणि तिवारी के मुताबिक रोजाना 50 हजार से ज्यादा किताबें बिकती हैं. सालों साल गीता प्रेस की पुस्तकों की बिक्री बढ़ती जाती है. साल 2021 में 78 करोड़ तो 2022 में करीब 100 करोड़ की कमाई हुई.और ऐसा तब है जब किताबों की कीमतें बेहद कम हैं. कई किताबें तो केवल दो रुपये की हैं।
गीत प्रेस की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक यह संस्था ना तो चंदा या उपहार स्वीकार करती है और ना ही अपनी संस्था की पत्रिकाओं में बाहरी विज्ञापन का प्रकाशन करती है. किताबों या पत्रिकाओं की कीमत कम-से-कम रखी जाती है ताकि पाठक धर्मार्थ इनका आसानी से अध्ययन कर सकें.
गीता प्रेस की पुस्तकें लागत से 40 से 60 फीसदी कम कीमतों पर बेची जाती हैं. सस्ती होने के साथ-साथ यहां की पुस्तकें छपाई से लेकर भाषाई शुद्धता की कसौटी पर भी खरी उतरती है. सुघड़ता और शुद्धता इसकी खास गुणवत्ता है. और यही इसकी लोकप्रियता का राज भी.
अहम सवाल ये है कि करीब 300 कर्मचारियों वाला यह संस्थान घाटे में किताबें छापकर क्यों बेचता है. कैसे घाटे की भरपाई होती है. तो इस सवाल का जवाब संस्थान की तरफ से अक्सर यह कहकर दिया जाता रहा है कि ट्रस्ट के दूसरे कार्यों से इस घाटे की भरपाई की जाती है.
इसका उद्देश्य हिंदू धर्म की पुस्तकों का प्रकाशन और उसका सस्ती दरों में जनकल्याण में वितरण है. गीता प्रेस की कल्याण पत्रिका का प्रकाशन निरंतर जारी है और करीब दो लाख प्रतियां बिकती है. प्रेस की अंग्रेजी पत्रिका कल्याण कल्पतरु की भी एक लाख प्रतियां बिकती हैं. संस्था का उद्देश्य समाज में सनातन धर्म के सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार करना है.
आइये जान लेते हैं क्यों और कब हुई थी गीता प्रेस की शुरुआत। गोरखपुर स्थित गीता प्रेस एक विश्व प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान है. इसकी स्थापना साल 1923 में हुई थी. इस लिहाज से प्रेस की स्थापना का यह शताब्दी वर्ष चल रहा है. इसकी स्थापना उस समय के बड़े धन्ना सेठों
जयदलाय जी गोयनका, घनश्याम जालान और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने की थी. कहते हैं-उन्होंने भगवत गीता की एक टीका लिखी थी, जिसमें प्रकाशन की बहुत अशुद्धियां थीं, जिसके बाद उन्होंने खुद ही प्रेस शुरू करने का संकल्प ले लिया. गीता प्रेस से कुल 14 भाषाओं में 41.7 करोड़ पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. दुनिया भर में यहां के ग्रंथों की आसानी से पहुंच है. इनमें श्रीमद् भागवत गीता, वाल्मिकी रामायण, तुलसीदास रचित रामचरितमानस, हनुमान चालिसा, दुर्गा चालिसा और पुराण आदि कई धार्मिक पुस्तकें शामिल हैं.
गीता प्रेस हिंदू धर्म ग्रंथों का दुनिया भर में लोकप्रिय एकमात्र ऐसा प्रकाशक, जिसका राजनीतिक जगत से दूर-दूर तक कोई लेना देना नहीं। गीता प्रेस से छपी पुस्तकों ने करोड़ों भारतीयों को सामाजिक बुराइयों से बचाया। अपनी लोकप्रिय सनातन कहानियों के जरिए छुआछूत, दहेज प्रथा, सामाजिक सद्भाव पर जोर दिया है। गीता प्रेस की किताबों ने हिंदी पट्टी के करोड़ों लोगों को पढ़ना सिखाया। किसान, जवान से लेकर लाखों स्त्रियों ने मानवती सीखी। भगवत गीता में लिखे श्रीकृष्ण के विचारों को जन जन तक पहुंचाने के कारण उसका विरोध क्यों होना चाहिए। यकीन मानिए गीता प्रेस जैसा समाज बदलने वाला प्रकाशन
यूरोप के किसी उन्नत देश में होता तो उसे अब तक राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया जाता। लेकिन अपने देश में हर चीज राजनीति के चश्मे से देखी जाती है। कांग्रेस को देश के सामने साबित करना चाहिए कि किस तरह गीता प्रेस को गान्धी के हत्या के बराबर के पलड़े में रखा। गीता प्रेस हमारी राष्ट्रीय धरोहर है। आप इसे विश्व का एक अजूबा भी कह सकते हैं । प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार भारत में नहीं हुआ लेकिन उसका ऐसा उपयोग किसी देश में नहीं हुआ। इसे इसी तरह देखना चाहिए.
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सावन के रुद्राभिषेक में इन 3 गलतियों से नहीं मिलता है फल
शिव जी का प्रिय महीना सावन आते ही भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए लोग पूजा-पाठ करते हैं। इस बार सावन मे आठ सोमवार पर रहे हैं. बीच में पुरुषोत्तम मास के कारण ऐसा हो रहा है. शिव जी को प्रसन्न करने के लिए सावन में रुद्राभिषेक सबसे उत्तम माना जाता है। रुद्राभिषेक एक पूजा और धार्मिक क्रिया है, जो भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाती है। इस प्रक्रिया में शिवलिंग पर जल, धूप, दीप और बिल्वपत्र की अर्पण किया जाता है और मंत्रों का जाप भी किया जाता है। रुद्राभिषेक का मुख्य उद्देश्य भगवान शिव की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना होता है। यह पूजा भक्ति और समर्पण का एक विशेष प्रकार है, जिसमें शिव के गुणों को स्मरण करते हुए उनकी कृपा प्राप्ति का प्रयास किया जाता है। लेकिन रुद्राभिषेक में कुछ छोटी गलतियों के कारण फल नहीं मिल पाता, मनोकामना तुरंत पूरी नहीं होती. आइए सबसे पहले जान लेते हैं कि रुद्राभिषेक क्या होता है और इसके क्या महत्व हैं...
रुद्राभिषेक दो शब्दों रुद्र और अभिषेक से मिलकर बना है। भगवान शिव को ही रुद्र भी कहा जाता है। वहीं अभिषेक का अर्थ है स्नान कराना। इस प्रकार से रुद्राभिषेक का अर्थ है भगवान शिव का अभिषेक। इसलिए शिव पूजा में रुद्राभिषेक जरूर कराते हैं। इससे शिव जी प्रसन्न होते हैं।
रुद्राभिषेक के लिए आवश्यक सामग्री क्या लगती है, ये भी समझ लीजिए.
रुद्राभिषेक के लिए प्रयुक्त सामग्री में मुख्यरूप से जल, दूध, घी, दही, मधु, गंध, धूप, दीप, फूल, बेलपत्र, रुद्राक्ष, पुष्पमाला, कुश आदि शामिल होते हैं।
कब करें रुद्राभिषेक?
रुद्राभिषेक करते समय सबसे संकल्प करते हैं. लेकिन अक्सर लोग संकल्प में अपनी मनोकामना साफ नहीं बोलते. ये बहुत ज़रूरी है कि भोलेनाथ से आपको क्या मांगना है, ये साफ शब्दों में बोलें, इससे सृष्टि को भी अहसास रहता है कि आपको क्या देना है. आम तौर पर लोग सकल मनोरथाया बोलकर मान लेते हैं कि सारी मन की इछाएँ पूरी हो जाएं, लेकिन हर इंसान के मन में असीमित इछाएँ होती हैं, वो किसी की भी पूरी नहीं होतीं. आपने पौराणिक कहानियों में सुना होगा कि भगवान् प्रकट हुए और तीन वर मांगने को कहा, तो यहाँ भी असीमित नहीं, बल्कि केवल तीन ही इच्छाऐं पूरी होंगी. इसीलिए स्पष्टता चाहिए. संकल्प के दौरान शिवलिंग में भगवान भोलेनाथ की उपस्थिति देखना अत्यंत आवश्यक है। कहा जाता है कि शिव जी शिवरात्री, प्रदोष और सावन सोमवार के दौरान सभी शिवलिंग में विराजमान होते हैं। ऐसे में ये समय रुद्राभिषेक के लिए सबसे उत्तम हो है।
अब जान लीजिए रुद्राभिषेक कितने प्रकार के होते हैं.
कलह कलेश दूर करने के लिए दही से रुद्राभिषेक करें,
उत्तम सेहत के लिए भांग से रुद्राभिषेक,
घी की धारा से रुद्राभिषेक करने से वंश का विस्तार होता है।
ग्रह दोष दूर करने के लिए गंगाजल से रुद्राभिषेक।
धन संपत्ति की प्राप्ति के लिए गन्ने के रस से रुद्राभिषेक
घर में सुख एवं शांति के लिए दूध से रुद्राभिषेक।
शिक्षा में सफलता के लिए शहद से रुद्राभिषेक।
दुश्मनों को परास्त करने के लिए भस्म से रुद्राभिषेक करने का फल तुरंत प्राप्त होता है. अब जानिए रुद्राभिषेक की विधि.
रुद्राभिषेक से पूर्व भगवान गणेश, माता पार्वती, ब्रह्मदेव, मां लक्ष्मी, नवग्रह, पृथ्वी माता, अग्नि देव, सूर्य देव और मां गंगा का ध्यान कर उनकी पूजा करें। ये बहुत ज़रूरी है. शिव परिवार प्रसन्न होगा, तभी मनोकामना तुरंत पूरी होगी.
इसके बाद फिर रुद्राभिषेक की शुरुआत करें। शिवलिंग उत्तर दिशा में रखें और जो लोग रुद्राभिषेक कर रहे हैं उनका मुंह पूर्व दिशा की तरफ होना चाहिए। इसके बाद श्रृंगी में गंगाजल डालकर शिवलिंग पर अर्पित करें और ऊं नम: शिवाय मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र, शिव तांडव स्तोत्र का जाप करें।
गंगाजल चढ़ाने के बाद दूध, दही, घी, शहद, गन्ने का रस, सरसों का तेल, इत्र भगवान शिव जी को अर्पित करें। फिर सफेद चंदन का लेप बनाकर शिवलिंग का श्रृंगार करें। इसके बाद भगवान भोलेनाथ को पान का पत्ता, अक्षत, अबीर, सुपारी, बेलपत्र, रोली, मौली, भांग, जनेऊ, धतूरा, आक के फूल, भस्म, नारियल आदि अर्पित करें और फल और मिठाई का भोग लगाएं
अंत में पूरे परिवार के साथ शिव जी की आरती करें। आरती के बाद अभिषेक के जल का पूरे घर में छिड़काव करें। रुद्राभिषेक के जल का पूरे घर में छिड़काव करने से रोगों से छुटकारा मिलता है।
तो इस बार इस तरह संकल्प करें, आपकी मनोकामना ज़रूर पूरी होगी. इस पुण्य ज्ञान को सभी ईस्ट मित्रों तक भी पहुचाएं. ओं म नमः शिवाय