मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024 | 04:55 IST
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राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा कामयाब क्यों नहीं हो पा रही ?


राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा को दस दिन हो चुके हैं, लेकिन अभी तक पार्टी में उत्साह नहीं है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा अब पूर्वोत्तर का पड़ाव पूरा करके बंगाल में आ चुकी है। लेकिन इस बार पिछली बार जैसा जोश नहीं दिख रहा है। न मीडिया में यात्रा को लेकर कोई खास कवरेज है और न ही कांग्रेसियों में पहले जितना उत्साह। इससे न केवल सोनिया-प्रियंका, बल्कि राहुल गांधी खुद हैरान हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि राहुल गांधी जब पैदल चलते हैं तो लोग अभी भी मिलने आते हैं, उनको देखने आते हैं, लेकिन पिछली बार जैसा बड़ा फलक नहीं दिख पाया है अभी तक। इस  बीच इंडिया गठबंधन में दरार की ख़बरों ने भी राहुल की यात्रा पर असर डाला है। बंगाल में यात्रा ने प्रवेश किया, लेकिन न टीएमसी की मुखिया ममता बनर्जी स्वागत करने पहुंची और न ही उनकी पार्टी का कोई दूसरा बड़ा नेता। इतना ही नही ममता ने तो बंगाल में कांग्रेस को एक भी सीट देने से इनकार करके सनसनी फैला दी। उधर नीतीश कुमार के भी किसी भी समय इंडिया गठबंधन को अलविदा कहने की आहट सुनाई दे रही है। आइये समझते हैं एक एक करके कैसे इंडिया गठबंधन बिखर रहा है और इसका बुरा असर राहुल गांधी की यात्रा पर पड़ रहा है। 
पूरा पूर्वोत्तर पार करके राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा कूच बिहार के जरिए बंगाल में प्रवेश कर गई। दो दिन की छुट्टी के दौरान राहुल गांधी के पास खासा वक्त होगा, कि आगे की रणनीति कैसे तय की जाए। यात्रा के रफ्तार न पकड़ पाने से परेशान राहुल गांधी ने पार्टी महासचिव और संचार विभाग के पूर्व प्रमुख रणदीप सुरजेवाला को बुलाया । वैसे भी राहुल गांधी सभी साथियों से चर्चा करके यात्रा को कामयाब करने की तरकीबें खोज रहे हैं। 
वैसे इस बार की यात्रा चूंकि बस से हो रही है, इसलिए राहुल के पास रणनीति बनाने के लिए खासा समय है, लेकिन फिर भी पहले जैसा माहौल नहीं बन पा रहा है। 
29 जनवरी को यात्रा बिहार पहुंचने से पहले बंगाल के जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, उत्तर दिनाजपुर और दार्जिलिंग से गुजरेगी। एक बार फिर यात्रा 31 जनवरी को मालदा के रास्ते पश्चिम बंगाल में प्रवेश करेगी और 1 फरवरी को बंगाल छोड़ने से पहले कांग्रेस के दोनों गढ़ मुर्शिदाबाद से होते हुए जाएगी। भारत जोड़ो यात्रा के बंगाल में सिर्फ सात जिलों से होकर गुजरने की प्लानिंग है, इसमें मालदा और मुर्शिदाबाद जिले भी शामिल हैं, जो कांग्रेस का गढ़ माने जाते हैं। इसके बावजूद भी ममता बनर्जी, राहुल गांधी का स्वागत करने को तैयार नहीं है। अगर ममता या इंडिया गठबंधन का कोई बड़ा नेता राहुल की यात्रा का स्वागत करता तो इसकी मीडिया में भी चर्चा होती और कांग्रेसियों में भी जोश आता। 
सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी के यात्रा पर व्यस्त हो जाने से कांग्रेस मुख्यालय में फैसले अटक रहे हैं। इंडिया गठबंधन में सीट शेयरिंग की बात भी जोरशोर से आगे नहीं बढ़ पा रही है, जबकि समय अब बहुत कम बचा है। इसके पीछे की वजह है कि विपक्ष के नेता मुकुल वासनिक की अगुवाई वाली गठबंधन समिति को ज़्यादा अहमियत नहीं दे रहे हैं। चाहे तेजस्वी यादव हों या अखिलेश यादव या फिर इंडिया गठबंधन के दूसरे नेता, सभी का मानना है कि बिना गांधी परिवार की रजामंदी के कोई भी नेता फैसला नहीं ले सकता है, इसलिए वो इनसे जुड़ नहीं पा रहे। 
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा कुछ ही दिन में चर्चा में आ गई थी। उस समय यात्रा के दौरान साथ में चल रही भीड़, लोगों से मिलते जुलते राहुल की तस्वीरें लगातार आ रही थीं। दक्षिण भारत की कई फिल्मी हस्तियां और सेलिब्रिटी भी राहुल से मिलने पहुंचते थे। सोशल मीडिया पर राहुल गांधी की रील्स छाई रहती थीं। 
उस समय कांग्रेस सचिव संजीव सिंह समेत दूसरे कांग्रेसी राहुल गांधी की पहली भारत जोड़ो यात्रा के प्रचार प्रसार के लिए जरूरी प्रयासों में लगे थे। जयराम रमेश तो काफी मेहनत कर रही रहे थे, मनोज त्यागी जैसे नेता भी यात्रा को सफल बनाने की कोशिशों में काफी मशक्कत कर रहे थे। इसके अलावा बीच-बीच में दूसरे बड़े नेता भारत जोड़ो यात्रा से जुड़ रहे थे। सोशल मीडिया आदि के माध्यम से इसके प्रचार प्रसार को और महत्वपूर्ण बनाने में लगे थे। लेकिन बताते हैं कि इस बार आपसी तालमेल कहीं ठहरा सा हुआ है। मेहनत का बड़ा जिम्मा जयराम रमेश, केसी वेणुगोपाल के कंधे पर है। पवन खेड़ा, सचिव विनीत पुनिया संचार व्यवस्था में सहायक की तरह हैं। इसके बाद भी अभी तक भारत जोड़ो न्याय यात्रा राजनीतिक हलचल नहीं पैदा कर पा रही है।
इस बार अयोध्या के राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा और मोदी के लगातार दौरों के कारण राहुल की ज़्यादा चर्चा हो ही नहीं पाती। दरअसल राहुल गांधी की पहले चरण की भारत यात्रा के रणनीतिकारों में सुनील कानूगोलू थे। इस बार सुनील कानूगोलू नहीं जुड़ पाए हैं। रणदीप सुरजेवाला भी तब एक्टिव हुए जब राहुल गांधी को कहना पड़ा। 
हालांकि कांग्रेस के नेताओं का दावा है कि यात्रा बहुत सफल है। जैसे जैसे यात्रा आगे बढ़ रही है, उससे पूरा देश जुड़ रहा है। 
बताते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरग़े समेत तमाम नेता अभी भारत जोड़ो न्याय यात्रा से सहमत नहीं थे। वरिष्ठ नेताओं का मानना था कि लोकसभा चुनाव 2024 सिर पर हैं। विपक्षी दलों का गठबंधन खड़ा करना है। सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप दिया जाना है। सबसे बड़ी समस्या यह भी है कि 2014 के बाद से कांग्रेस पार्टी का लोगों से मिलने वाला चंदा घटा है। ऊपर से लगभग 250 करोड़ रुपये का भारत जोड़ो न्याय यात्रा खर्च और लोकसभा चुनाव 2024 का प्रचार-प्रसार, राजनीतिक गतिविधियों का खर्च दोनों भला कैसे हो पाएगा। आखिर इसे कांग्रेस कैसे पूरा कर पाएगी? पार्टी के रणनीतिकारों को एक उम्मीद और थी। वह यह कि कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक समेत अन्य नेता इंडिया गठबंधन के नेताओं से तालमेल बनाकर सीटों का बंटवारा समेत अन्य चुनौतियों को साध लेंगे। लेकिन पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव हों या तेजस्वी यादव समेत अन्य दूसरे नेताओं को बहुत भाव नहीं दे रहे हैं। इतना ही नहीं राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा में शामिल होने को लेकर भी नीतीश कुमार समेत तमाम नेताओं ने दूरी बनाकर रखी हुई है। अखिलेश पहले ही साफ कह चुके हैं कि जब तक सीट शेयरिंग पर कांग्रेस मान नहीं जाती,यात्रा से जुड़ने में दिक्कत आएगी। इंडिया गठबंधन के नेताओं को सबसे ज़्यादा चिन्ता मुसलिम वोट बैंक की है। अगर बिना शीट शेयरिंग के अखिलेश जैसे नेता शामिल हो गए तो चर्चा में आने के बाद कांग्रेस अपनी बारगेनिंग पावर बढ़ा सकती है, तब समाजवादी पार्टी के सामने कांग्रेस का विरोध करना मुश्लिल पड़ जाएगा, इसलिए वे इंतजार कर रहे हैं, लेकिन समय हाथ से निकलता जा रहा है। 
कांग्रेस के अंदरुनी सूत्र बता रहे हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे 81 साल के हैं और इस उम्र में वो पार्टी में जोश कैसे भर पाएंगे? 
वैसे भी एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हार से कार्यकर्ताओं का मनोबल गिरा हुआ है . इन राज्यों में हार का असर अब राष्ट्रीय राजनीति पर पड़ रहा है। इंडिया गठबंधन के दलों की भी साझे में सीटों की मांग काफी बढ़ गई है। सूत्र का कहना है कि जो निर्णय पार्टी ने तीनों राज्यों में हार के बाद लिए, यदि थोड़ा पहले यही स्टैंड लिया होता, तो हालात बदले हुए होते। देखना है कि अब राहुल गांधी की यात्रा कार्यकर्ताओं में जोश भरने में कितनी कामयाब होती है। 
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