मंगलवार, 5 दिसम्बर 2023 | 01:26 IST
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क्या अब गिरफ्तार हो जाएंगे बीजेपी सांसद बृजभूषण ?



महिला पहलवानों के आरोपों में घिरे कैसरगंज के बीजेपी सांसद और भारतीय कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह अब पार्टी अलग थलग पड़ते जा रहे हैं। जिस तरह पहलवानों के समर्थन को किसान संगठनों का साथ मिला और उसके बाद पुलिस एफआईआर में दर्ज आरोप मीडिया में उछलने लगे हैं, उससे बीजेपी हिल गई है। मीडिया भी धीरे धीरे बृजभूषण के मुद्दे पर बीजेपी को घेरने लगा है। इस बीच सबसे बड़ी चिन्ता सीएम योगी आदित्यनाथ हो रही है। योगी कैंप का साफ कहना है कि बृजभूषण को गंभीर आरोपों में बचाने से यूपी की कानून व्यवस्था सुधारने पर मिली इज्जत मिट्टी में मिल रही है। सूत्रों का दावा है कि इसीलिए अयोध्या में पांच जून को होने वाली संतों की रैली को रद्द किया गया है। योगी सरकार ने इसके लिए परमिशन नहीं दी तो मजबूर होकर बृजभूषण को रैली रद्द करने की चिट्ठी जारी करनी पड़ी। बृजभूषण के मुद्दे पर बीजेपी में क्या चल रहा है और क्यों बीजेपी अब उनको जेल जाने से नहीं बचा पाएगी, आइये समझते हैं। 
भारतीय  कुश्ती संघ के निवर्तमान अध्यक्ष और भाजपा सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह इस समय पहलवानों के आंदोलन के कारण चर्चा में हैं। उनके खिलाफ कई ओलंपियन और महिला पहलवानों ने यौन शोषण का आरोप लगाया है। पहलवानों के समर्थन में पश्चिमी यूपी और हरियाण की कई खाप पंचायतें खुलकर मैदान में आ चुकी हैं। 1983 का वर्ल्ड कप जीतने वाली क्रिकेट टीम ने भी बयान जारी करके महिला पहलवानों का समर्थन कर दिया है। 
शुरू में मीडिया इस मुद्दे पर संतुलन साधा, लेकिन जिस तरह से इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने महिला पहलवानों के एफआईआर में दर्ज आरोपों को छाप दिया, उससे सोशल मीडिया में बीजेपी पर सवाल खड़े होने लगे हैं। दिल्ली पुलिस को दर्ज कराए गए बयानों में महिला पहलवानों ने इतने संगीन आरोप लगाए हैं कि कोई सामान्य इंसान होता तो पॉस्को एक्ट में कबका गिरफ्तार हो चुका होता, लेकिन दबंग सांसद बृजभूषण के साथ बीजेपी आलाकमान क्यों खड़ा है, ये बात पार्टी कार्यकर्ताओं को भी समझ में नहीं आ रही है। इस मुद्दे पर सबसे बड़ी चिन्ता योगी कैंप की ये है कि इससे यूपी की कानून व्यवस्था का मुद्दा सरकार के खिलाफ जा सकता है। योगी ने कानून व्यवस्था सुधारकर मुश्किल से मजबूत छवि तैयार की है, अगर इसी तरह बृजभूषण का मुद्दा गरमाता रहा तो योगी सरकार की किरकिरी तो होगी ही, लोकसभा चुनाव में माहौल भी बन सकता है। हो सकता है कि बृजभूषण पूर्वांचल की दो-चार सीटें बीजेपी के लिए निकलवा दें, लेकिन बाकी जगह नुकसान हो सकता है। इसलिए लगता नहीं है कि सरकार अब बृजभूषण को ज़्यादा बचा पाएगी। लगता है कि बृजभूषण पर जल्द ही कोई न कोई कार्रवाई जरूर होगी। 
हालांकि ये भी सच है कि सांसद बृजभूषण बीजेपी में सीएम योगी आदित्यनाथ से सीनियर हैं और नब्बे के दशक से पूर्वांचल की राजनीति का बड़ा नाम रहे हैं। अयोध्या के संतों में बृजभूषण की अच्छी पैठ भी है, इसीलिए संत, हरियाणी का खाप-पंचायतों से भिड़ने को तैयार हो गए थे। इसके लिए पांच जून को अयोध्या के राम कथा पार्क में जन चेतना महा रैली का आयोजन होने वाला थाष। रैली का आयोजन भले ही ब्रजभूषण शरण सिंह और उनके समर्थक कर रहे थे, लेकिन इसे मेगा शो बनाने का काम अयोध्या के साधु संत ही कर रहे थे। अयोध्या आंदोलन का प्रमुख चेहरा रहे बृजभूषण को समर्थन देने के लिए रैली में वाराणसी, हरिद्वार और मथुरा सहित अयोध्या के मणि राम दास छावनी पीठ के अनुयायी भी शामिल होने वाले थे। लेकिन सीएम योगी ने इस आयोजन की परमिशन नहीं दी। इससे बृजभूषण अंदर से तिलमिला गए हैं। कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बृजभूषण शरण सिंह की अयोध्या रैली से संतुष्ट नहीं थे। जिस समय योगी आदित्यनाथ ने पूरे प्रदेश में अपराधियों पर कठोर कार्रवाई कर अपनी एक अलग छवि बनाई है, उस बीच यदि बृजभूषण शरण सिंह अयोध्या में रैली करते तो इसका नकारात्मक असर पड़ता। भाजपा सूत्रों के अनुसार, योगी आदित्यनाथ यह कतई नहीं चाहते थे। यही कारण है कि अयोध्या में होने वाली रैली को प्रशासन से हरी झंडी नहीं मिली।
इतना ही नहीं अयोध्या में ही अगले वर्ष के प्रारंभ में भगवान राम की जन्मस्थली पर बन रहे मंदिर का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों होना है। इसी राम मंदिर के सहारे बीजेपी लोकसभा चुनाव में 80 सीटें जीतने का दांव लगा रही हैष। भाजपा नेताओं का मानना है कि यदि इसी बीच बृजभूषण शरण सिंह अयोध्या में रैली करते हैं, तो इससे विपक्ष को राजनीति करने का बड़ा मौका मिल जायेगा। यही कारण है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व की ओर से भी बृजभूषण शरण सिंह को पीछे हटने के संकेत दिए गए हैं। बीजेपी के सूत्रों का दावा है कि पार्टी में आंतरिक स्तर पर भी कोई नेता बृजभूषण शरण सिंह के साथ नहीं है। लोग यह समझ नहीं पा रहे हैं कि आलाकमान को आखिर बृजभूषण शरण सिंह का बचाव क्यों करना चाहिए? इसके पहले भी पार्टी ने कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में इसी तरह कार्रवाई करने में देर की थी, जिसके कारण जनता के बीच पार्टी की खासी किरकिरी हुई थी। पार्टी नेता चाहते हैं कि अब इस मामले में देर नहीं की जानी चाहिए और उन पर कड़ी कार्रवाई कर महिलाओं के बीच बेहतर संदेश देना चाहिए।
उधर महिला पहलवानों ने जिस तरह रो-रोकर अपने मेडल गंगा में बहाने की कोशिश की- उससे हरियाणा ही नहीं पश्चिम यूपी में भी बीजेपी के खिलाफ माहौल तैयार होने लगा है। हालांकि बीजेपी के लिए ये अच्छी बात है कि एसपी के मुखिया अखिलेश ने बृजभूषण के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया है। पार्टी के प्रवक्ता भले ही खानापूरी कर रहे हैं, लेकिन अखिलेश इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से बच रहे हैं। इसके पीछे अखिलेश को लगता है कि बृजभूषण बीजेपी से हटाए गए तो एसपी में आकर पूर्वांचल की दो-तीन सीटों पर मदद जरूर कर सकते हैं। कैसरगंज, गोंडा, गाजीपुर के आसपास बृजभूषण का खासा असर है और वे पार्टी से ज़्यादा अपनी निजी ताकत से जीतते आ रहे हैं। कुल मिलाकर बृजभूषण का मुद्दा मोदी सरकार के गले की हड्डी बनता जा रहा है, जिसके समाधान का रास्ता नहीं सूझ रहा। 

 



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