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विचार | पसमांदा मुसलमान 2024 में बीजेपी को वोट क्यों देंगे ?
पसमांदा मुसलमान 2024 में बीजेपी को वोट क्यों देंगे ?
2024 के लोकसभा चुनाव से पहले सियासी सरगर्मियां तेज हैं। कर्नाटक चुनाव हारने के बाद बीजेपी अगले चुनावों के लिए नई रणनीति तैयार कर रही है, जबकि नीतीश की अगुवाई में विपक्षी गठबंधन आकार ले रहा है। ज़ाहिर है अगर विपक्ष एकजुट हो गया तो बीजेपी की सीटें घटेंगी, ऐसे में संभावित नुकसान से बचने के लिए बीजेपी कई फॉर्मूलों पर काम कर रही है जिसमें एक है पसमांदा मुसलमानों पर दांव। बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा मुस्लिम बहुल सीटों पर बड़े पैमाने पर मोदी मित्र बनाने में जुटा हुआ है। सभी मुस्लिम बहुल सीटों पर 5000 मोदी मित्र बनाने का लक्ष्य रखा है। इस तरह बीजेपी अगले लोकसभा चुनाव से पहले 100 लोकसभा सीटों पर पांच लाख मुसलमानों को मोदी मित्र बनाकर मुस्लिम समाज में अपनी पैठ बनाने का रणनीति पर काम कर रही है। दिसंबर तक इस लक्ष्य को पूरा किया जाना है। उसके बाद दिल्ली में सभी मोदी मित्रों का एक बड़ा सम्मेलन आयोजित किया जाएगा इस सम्मेलन में मोदी खुद अपने चाहने वालों से सीधा संवाद करेंगे। इसे अगले लोकसभा चुनाव से पहले पीएम मोदी मुस्लिम समाज को अपने मुस्लिम मित्रों के जरिए महत्वपूर्ण संदेश देंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जुलाई 2022 में हैदराबाद में हुई भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में मुस्लिम समुदाय के कमजोर और वंचित तबकों को भाजपा से जोड़ने की सलाह दी गयी थी. बीजेपी तभी से पसमांदा को अपने साथ जोड़ने की कोशिशों में जुटी थी। हाल ही में यूपी नगर निकाय चुनाव में बीजेपी को अहसास हुआ है कि उसकी रणनीति सही जा रही है। बड़ी संख्या में बीजेपी ने मुसलिमों को टिकट दिया और उनको अच्छे वोट भी मिले। अब यही प्रयोग 2024 में करने के लिए बीजेपी तैयार है। उससे पहले समझ लीजिए, आखिर पसमांदा हैं कौन और बाकी मुसलमानों से अलग क्यों सोचते हैं ?
देश के पांच राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, झारखंड और असम में मुस्लिम आबादी 19.26 प्रतिशत से 34.22 प्रतिशत के बीच है, जाहिर हैं इनमें से अधिकतर पसमांदा मुस्लिम हैं. इन पाँचों राज्यों में 190 से ज्यादा लोकसभा की सीटें आती हैं, इसके साथ ही दक्षिण भारत के राज्यों में भी पसमांदा मुस्लिमों की अच्छी तादाद है. वैसे इस्लाम में जाति की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन भारतीय मुसलमान भी जातीय विषमता के शिकार हैं. 2007 में आयी न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में स्वीकार किया गया था कि भारत में जाति व्यवस्था ने मुसलमानों सहित सभी धार्मिक समुदायों को प्रभावित किया है. यह विडंबना ही है कि भारत में नीची माने जाने वाली जातियों के कई लोगों ने जातिप्रथा के उत्पीड़न से बचने के लिए इस्लाम या ईसाई धर्म अपनाया लेकिन इसके बाद भी वे जाति व्यवस्था के मजबूत जकड़ से अपना पीछा नहीं छुड़ा सके. कई रिसर्च में बताया गया है कि भारत में कुल 584 मुस्लिम जातियाँ और पेशागत समुदाय हैं. मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर पिछड़े वर्गों को जो 27 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है उसमें 79 मुस्लिम जातियां शामिल हैं जिनमें से अधिकतर पसमांदा हैं.
ऐसा माना जाता है कि भारत के मुस्लिम समाज का 85 फीसदी हिस्सा पसमांदा है. “पसमांदा” का अर्थ है ‘पीछे छूटे हुए' या ‘दबाए गये लोग’. दरअसल पसमांदा शब्द का उपयोग मुसलमानों के बीच दलित और पिछड़े मुस्लिम समूहों के संबोधन के लिए किया जाता है.ऐसा माना जाता है कि ज्यादातर पसमांदा मुसलमान हिन्दू धर्म से कन्वर्ट होकर मुसलमान बने हैं लेकिन वे अपनी जाति से पीछा नहीं छुड़ा सके हैं. इनमें से अधिकतर की सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक स्थिति हिन्दू दलितों एवं आदिवासियों के सामान या उनसे भी बदतर है. संख्या में अधिक होने के बावजूद पसमांदा मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व भी काफी कम है. पहली से लेकर चौदहवीं लोकसभा तक चुने गए कुल 400 मुस्लिम सांसदों में केवल 60 पसमांदा सांसद शामिल हैं. कई बार पसमांदा मुसलमान एक भी हुए और आंदोलन भी चलाया। आंदोलन में उनका नारा रहा है “हिंदू हो या मुसलमान पिछड़ा-पिछड़ा एक समान”।
बीजेपी ने इसी प्रगतिशील नारे से अपनी सियासी ज़मीन की खड़ी की। कांग्रेस सहित सभी सरकारों ने हमेशा पसमांदा मुसलमानों की उपेक्षा
की, इसका कारण था, बीजेपी का डर दिखाकर उनका वोट ले लिया गया। लेकिन केन्द्र और कई राज्यों में बीजेपी के शासन के बाद पसमांदा को समझ में आ गया है कि पिछली सरकारों की तुलना में उनका आर्थिक विकास इस सरकार में ज़्यादा हुआ है। सरकार की कई स्कीम्स में सीधे एकाउंट में पैसा मिला और इसके साथ ही बीजेपी सीधे गले भी लगा रही है तो फिर क्या सोचना । अब सवाल उठता है कि पसमांदा समाज की ताकत कितनी है और क्या सभी पसमांदा मुसलमान बीजेपी को वोट देंगे, तो जवाब है बड़ी ताकत है, लेकिन बड़ी संख्या में अभी भी वोट नहीं देंगे, लेकिन अगर दस फीसदी ने भी वोट दे दिया तो बीजेपी को न केवल बड़ा फायदा हो जाएगा, बल्कि विपक्ष के खाते से उतने वोट कट जाएंगे।
दरअसल भाजपा हिन्दू एकता के अपने विराट प्रोजेक्ट के तहत पहले ही ओबीसी के ग़ैर-यादव जातियों और ग़ैर जाटव दलितों के बीच अपना पैठ बना चुकी है, अब पसमांदा मुसलमानों को अपनी तरफ आकर्षित करके अपने सोशल इंजीनियरिंग को अभेद बना देना चाहती है. इसकी कवायद लम्बे समय से चल रही है,
2014 में सत्ता में आने के बाद भाजपा द्वारा पहली बार एक पसमांदा मुस्लिम अब्दुल रशीद अंसारी को पार्टी के राष्ट्रीय अल्पसंख्यक मोर्चा का अध्यक्ष बनाया गया. इससे पहले भाजपा अधिकतर शियाओं और कुछ हद तक बरेलवी मुसलामानों पर ही ज्यादा ध्यान देती थी. इसी प्रकार से उत्तर प्रदेश में दूसरी बार सत्ता हासिल करने के बाद इकलौते मुस्लिम मंत्री के रूप में दानिश अंसारी को जगह दी गयी जो एक पसमांदा मुसलमान हैं. इसी तरह
इसी तरह बीजेपी ने यूपी निकाय चुनाव में 391 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। इनमें 5 नगर पालिका परिषद और 35 नगर पंचायतों के अध्यक्ष प्रत्याशियों के अलावा नगर निगमों के पार्षद प्रत्याशी शामिल हैं। जिसमें दो पार्षद उम्मीदवार लखनऊ, 21 मेरठ, 13 सहारनपुर और तीन बनारस में है।
तो बीजेपी की रणनीति पूरी तरह साफ है। अगर विपक्ष इस बार जातीय आधार पर उनके वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो जाता है तो पसमांदा मुसलिमों के जरिए उसकी भरपाई की जा सके। हर सीट पर 5 हजार मोदी मित्र बनाए जाएंगे वे अभी अपने साथ रिश्तेदारों और दोस्तों का वोट लाएंगे। अगर केवल दस फीसदी पसमांदा मुसलिमों ने भी बीजेपी को वोट दे दिया तो करीब 50 से 70 सीटों पर असर पड़ जाएगा।इतनी ही सीटों से लोकसभा चुनाव में कोई पार्टी सत्ता की ओर कदम बढाएगी। तो मोदी के इस प्लान की काट के लिए विपक्ष अभी तैयार भी नही हुआ है।