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ऑर्गेन‍िक खेती कैसे ला रही पहाड़ी महिलाओं की ज‍िंदगी में बदलाव ?


आजकल देश में सस्टेनेबल लाइफस्टाइल, ईको-फ्रेंडली और ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के बारे में जागरूकता बढ़ रही है। लोग अपनी जीवनशैली में सुधार कर रहे हैं, जिसके कारण ऑर्गेन‍िक प्रोडक्ट्स की काफी डिमांड है। हालांकि हमारे यहां के किसानों में अभी भी ऑर्गेन‍िक खेती को लेकर कम जागरुकता है। हालांक‍ि अब इस कमी को पूरा करने के ल‍िए कोशिश हो रही है, ज‍िसका सकारात्‍मक असर द‍िख रहा है। ज‍िसकी वजह से पहाड़ी राज्‍य उत्‍तराखंड में इसे लेकर जागरूकता बढ़ रही है। ऐसी ही एक पहल उत्तराखंड के मुक्तेश्वर में निर्वाना ऑर्गेन‍िक ने की है।  

पहाड़ी राज्‍य उत्‍तराखंड में पुरुषों की तुलना में महिलाएं खेतों में ज्यादा काम करती हुई दिखती हैं। इसका कारण यह है कि पहाड़ों में टूरिज्म और खेती आजीविका कमाने के दो प्रमुख साधन हैं। यहां पर कमाई के जरिए सीमित है। इसी कारण से पुरुष पैसा कमाने के लिए दूसरे राज्यों का रुख करते हैं। घर पर महिलाएं रहती हैं जो कि घर के काम के साथ ही खेतों में भी अपना योगदान देती हैं। इस वजह से पहाड़ों में खेती काफी हद तक महिलाओं पर निर्भर है। पहाड़ों में कृषि क्षेत्र अविकसित है। भू-आकृति, जलवायु, भारी वर्षा और अन्य पर्यावरणीय कारकों के कारण खेती मुश्किल हैं। इसके साथ जलवायु परिवर्तन ने हिमालयी क्षेत्र में खेती पर बुरा असर डाला है।

पहाड़ों पर जीवनयापन करना कठिन होता है। यहां पर मौसम की मार, जंगलों की आग, भूस्खलन और बाढ़ के खतरों से लोगों को हर समय जूझना पड़ता है। ऐसी स्थिति में महिलाओं को और भी ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ता है। वे अपने कंधों पर सिर्फ भारी टोकरी ही नहीं बल्कि अपने परिवार और खेतों की जिम्मेदारियों का बोझ भी उठा रही हैं। वे घर के साथ ही खेती में भी पूरा सहयोग करती हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें सही गाइडेंस और ट्रेनिंग मिले तो वे अपने परिवार के साथ ही पूरे इलाके को बदलने की क्षमता रखती हैं। देश में हिमालयन प्रोडक्ट्स के स्वाद और शुद्धता ने इन्हें लोकप्रिय बनाया। इस लोकप्रियता को देखते हुए कई छोटे-बड़े उद्यमों की शुरुआत हुई। इस पहल की वजह से स्थानीय लोगों को रोजगार मिला है और क्षेत्र की आर्थिक स्थिति में काफी सुधार आया है। अब यहां के लोगों को सस्टेनेबल फार्मिंग के तरीकों, जैविक खादों के इस्तेमाल और मिट्टी के संरक्षण के बारे में शिक्षित किया जा रहा है। देश नहीं बल्कि विदेश के बाजारों तक भी पहाड़ी उत्पादों की पहुंच हो रही है।

मुक्तेश्वर का क्षेत्र अपने फलों के बागों के लिए जाना जाता है। हालांकि यहां पैदा होने वाले फल मौसम की अनिश्चितता के कारण काफी मात्रा में खराब हो जाते हैं। अब किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है कि वे फलों के फ्रूट जैम जैसे उत्पाद बनाएं। इससे फल तो खराब होने से बचते ही हैं, साथ ही अतिरिक्त कमाई भी होती है। यहां ऐसी ही एक पहल न‍िर्वाना ऑर्गेन‍िक ने की है, जिनके व‍िशेषज्ञों की एक टीम क‍िसानों के साथ म‍िलकर काम कर रही है। न‍िर्वाना पूरे उत्तराखंड में करीब 2000 किसानों और परिवारों से जुड़ा है। 

 

 

 



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