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विचार | विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव क्यों लेकर आया ?
विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव क्यों लेकर आया ?
नवीन पाण्डेय
पीएम मोदी ने अपने पिछले कार्यकाल के दौरान जुलाई 2018 में संसद में विपक्ष पर तंज कसते हुए कहा था कि 2023 में फिर आप ऐसा ही अविश्वास प्रस्ताव लेकर आने की तैयारी शुरू कर दें। शायद मोदी को तभी अंदाजा था कि उनकी सरकार लौटेगी और विपक्ष कार्यकाल खत्म होने से पहले फिर यही करेगा। और ठीक वैसे ही होने जा रहा है। संसद के मानसून सत्र में मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस ने विपक्ष की ओर से अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। आमतौर पर अविश्वास प्रस्ताव तब लाया जाता है जब सरकार के पास बहुमत होने का शक होता है, लेकिन मोदी सरकार के बाद 300 से ज़्यादा सांसदों का समर्थन है। तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर विपक्ष की रणनीति क्या है। 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष मोदी सरकार को कहां फंसाना चाहता है।
अविश्वास प्रस्ताव के बहाने विपक्ष कैसे मोदी को चकमा देने की तैयारी कर रहा है। मोदी सरकार भी अपनी रणनीति पुख्ता करने से पहले अविश्वास प्रस्ताव पर बहस शुरू नहीं होने देना चाहती। तो 2024 का संग्राम संसद से शुरू हो रहा है, जहां एक तरफ इंडिया वाले मोर्चे में 24 दल है, तो एनडीए गठबंधन में 39 दल आ चुके हैं। अविश्वास प्रस्ताव की पूरी रणनीति समझते हैं।
आजादी के बाद से ये 28वां अविश्वास प्रस्ताव होगा। मोदी सरकार के खिलाफ ये दूसरी बार होगा। इससे पहले भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को पिछले कार्यकाल के आखिरी दिनों में 20 जुलाई 2018 को अपने पहले 'अविश्वास' प्रस्ताव का सामना करना पड़ा और प्रस्ताव भारी अंतर से गिर गया था। उस समय अविश्वास प्रस्ताव चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी द्वारा लाया गया था। विपक्ष ने बताया है कि इस बार अविश्वास प्रस्ताव लाने का मकसद मणिपुर के मुद्दे पर पीएम को बयान देने के लिए मजबूर करना है।
संसद के मॉनसून सत्र में अब तक सिर्फ हंगामा ही देखने को मिला है। मणिपुर के मुद्दे पर सदन की कार्यवाही एक दिन भी ठीक से नहीं चली। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी मांग पर अड़े हैं। वहीं इस बीच बुधवार विपक्ष की ओर से केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया। अब ऐसे में सवाल है कि संख्याबल कम होने के बावजूद विपक्ष ऐसा क्यों कर रहा। वैसे विपक्षी दल भी मानते हैं कि ये अविश्वास प्रस्ताव गिर ही जाएगा, तब फिर वो क्यों अपनी किरकिरी करवा रहे हैं। तो समझ लीजिए विपक्ष का गेम क्या है और मोदी सरकार उससे कैसे निपटेगी।
अविश्वास का प्रस्ताव भले ही कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने पेश किया हो, लेकिन इसमें विपक्षी मोर्चा यानी I.N.D.I.A पूरा साथ है। कांग्रेस फौरन इस पर चर्चा कराना चाहती है, लेकिन नियम कहता है कि 10 दिन के अंदर स्पीकर फैसला लेंगे कि कब बहस शुरू होनी है। उम्मीद है कि अगले हफ्ते संसद में इस पर बहस होगी, तब पीएम को भी जवाब देना पड़ेगा। विपक्ष की रणनीति है कि अविश्वास प्रस्ताव पर जब बहस होगी तो सारे टीवी चैनल लाइव दिखाएंगे, वैसे भले ही गोदी मीडिया वाले चैनल विपक्ष की आवाज को दबाते रहे हों, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पर बहस तो दिखानी होगी। इसी का फायदा उठाते हुए विपक्षी नेता मोदी सरकार की पोल खोलने वाली दलीलें पेश करना चाहते हैं।
विपक्ष को यह बात पता है कि लोकसभा में चर्चा के दौरान ज्यादा उसे ज्यादा वक्त न मिले क्योंकि समय का आवंटन सदन में दलों के संख्या बल के हिसाब से किया जाता है। I.N.D.I.A में कई ऐसे दल हैं जिनके लोकसभा में कोई सांसद नहीं। इसको ध्यान में रखकर उसकी ओर से रणनीति तैयारी की जा रही है। विपक्ष का मानना है कि पूरे देश का ध्यान मणिपुर पर 'अविश्वास प्रस्ताव' पर होगा और इससे परसेप्शन के खेल में विपक्ष को मदद मिल सकती है।
विपक्ष आंकड़ों के जरिए ये साबित करने की कोशिश करेगा कि भले ही देश की अर्थव्यवस्था तेज गति से आगे बढ़ रही हो, लेकिन इसमें मोदी सरकार का कोई योगदान नहीं है, बल्कि ये वैश्विक हालात हैं, इसमें भारत को फायदा मिलना तय है। उल्टे मोदी सरकार के कारण इसमें देरी हो रही है। विपक्ष दलील देगा कि अगर देश में इतनी भयंकर बेरोजगारी न होती तो मोदी सरकार 80 करोड़ लोगों को पेट भरने के लिए सरकार की ओर से व्यवस्था करने को मजबूर न होती। इसी तरह किसानों की हालत इतनी खराब है कि दो-दो हजार के लिए वे इंतजार करने को मजबूर हैं। वेतन देने के लिए धन न होने के कारण अग्विवीर स्कीम का सहारा लेना पड़ा, जिससे सेना को टेम्परेरी कर्मचारी मिलने लगे हैं और युवा चार साल बाद ही बेरोजगार हो रहा है। इस मुद्दे पर विपक्ष उत्तराखण्ड, हिमाचल जैसे पहाड़ी इलाकों के युवाओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश करेगी।
कांग्रेस के नेता ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हर मंत्री के कामकाज का कच्चा चिट्ठा खोला जाएगा। इसी के साथ जातीय जनगणना, आरक्षण की मांग और दलितों की दुर्दशा जैसे मुद्दों के जरिए पिछड़ा, दलित वोट खींचने की कोशिश होगी। अगर पांच फीसदी भी वोट खिसकाने में विपक्ष कामयाब हो गया तो बीजेपी की सौ सीटें घट जाएंगी। इतना ही नहीं तीन महीने बाद होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर भी इसका असर दिखेगा।
उधर मोदी सरकार के विपक्ष की रणनीति का पूरा अंदाजा है, इसलिए स्पीकर ने अचानक से बहस शुरू नहीं करवाई। मोदी सरकार पूरी तैयारी के साथ विपक्ष को जवाब देने के लिए उतरना चाहती है। मॉनसून सत्र के बीच पीएम मोदी ने बीजेपी संसदीय दल की बैठक में I.N.D.I.A पर करारा हमला बोला। पीएम ने कहा कि पहले ईस्ट इंडिया कंपनी आई। फिर इंडियन मुजाहिदीन । इसी तरह पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया भी बना। मोदी ने कहा कि अगर ये सोच रहे हैं कि पहले की तरह का भारत है और लोगों को गुमराह कर लेंगे तो यह गलत सोच रहे हैं।
मोदी सरकार यूपीए सरकार के करप्शन, परिवारवाद, लूट-खसोट की राजनीति पर हमला करेंगे। वे साबित करेंगे कि जैसे यूपीए की कई दलों की सरकार में दर्जनों घोटाले हुए थे, वैसे ही इंडिया की सरकार आई तो देश में लूट खसोट शूरू हो जाएगी और देश का विकास रुक जाएगा। इसी तरह मोदी सेना को हथियारों से मजबूर करने, नई शिक्षा नीति के फायदे गिनाएंगे, जिससे अगले पांच साल में देश अमेरिका और चीन के बाद तीसरे नंबर पर आ जाएगा।
लोकसभा चुनाव से पहले इसे I.N.D.I.A बनाम NDA की लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा है। I.N.D.I.A नया गठबंधन बनने के बाद विपक्ष चर्चा के केंद्र से हटना नहीं चाहता। इस गठबंधन के बाद यह संसद का पहला सत्र है और इस सत्र में विपक्ष पूरी मजबूती के साथ एक साथ दिखना चाहता है। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह के निलंबन पर ऐसा देखने को इसी सत्र में मिला। बुधवार कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी कहा कि हम उनके साथ हैं। इस सत्र के बाद कई राज्यों के चुनाव की तैयारी शुरू हो जाएगी और फिर लोकसभा का चुनाव ऐसे में विपक्ष पूरी तरह एकजुट दिखना चाहता है। वहीं दूसरी ओर एनडीए को भी पता है कि मुकाबला इन्हीं दलों के साथ होना है इसलिए अभी से इन पर प्रहार शुरू हो गया है। मणिपुर का मसला मॉनसून सत्र के केंद्र में जरूर है लेकिन असली लड़ाई I.N.D.I.A बनाम NDA की है।