शनिवार, 10 जून 2023 | 05:27 IST
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' द केरल स्टोरी ' - 32 हज़ार लड़कियों के 'लापता' होने की 'असलियत'


लव जिहाद के नाम पर केरल से 32 हजार लड़कियां लापता हो गईं- NIA ने जांच की लेकिन कोई सुबूत नहीं जुटा पाई- पिछले आठ साल में मोदी सरकार को भी पता नहीं चला- क्या आप इस पर यकीन करेंगे  ?
-कर्नाटक पुलिस, हाईकोर्ट, राज्य सरकार की एसआईटी, एनआईए जिस बात का पता नहीं लगा पाए- उसे एक फिल्म प्रोड्यूसर को कहां से पता लग गया ?  
पहले कश्मीर फाइल्स और अब द केरल स्टोरी- क्या हिन्दू सेंटिमेंट्स को उभारकर तिजोरी भरने का नया आइडिया बाजार में दौड़ने लगा ?
20 करोड़ में बनी कश्मीर फाइल्स ने 250 करोड़ का कारोबार कर लिया 
अब 30 करोड़ में बनी द केरल स्टोरी से पांच सौ करोड़ कमाने की उम्मीद 
सेंसर बोर्ड ने 10 कट लगाकर 'A' सर्टिफिकेट दिया, सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार क्यों कर दिया ?
भारी हंगामे की बीच पर्दे पर आ चुकी द केरल स्टोरी की कहानी कितनी सच्ची है कितनी झूठी, अगले 10 मिनट में चीरफाड़ करके बता देंगे 
लेकिन आगे बढ़ने से पहले आपसे गुजारिश है कि अगर अभी तक आपने हमारे चैनल को सबस्क्राइब नहीं किया है तो ज़रूर कर दें। 
द लखनऊ टाइम्स, आसमां और द लास्ट मोंक जैसी कम बजट की फिल्में बना चुके डायरेक्टर सुदीप्तो सेन अब द केरल स्टोरी लेकर आए हैं। भारी हंगामे और बिन पैसे के प्रमोशन के बीच फिल्म ने ठीक ठाक शुरूआत भी कर दी है और आगे माउथ पब्लिसिटी और मीडिया के सहारे फिल्म अपनी मंजिल यानी तगड़ी कमाई तक भी पहुंच सकती है। हिन्दी, तमिल, तेलुगु 
मलयालम और  अंग्रेजी में रिलीज हुई इस फिल्म में ठीक ठाक पहचान बना चुकी अदा शर्मा के साथ योगिता बिहानी, सोनिया बलानी, सिद्धि इडनानी, विजय कृष्ण, प्रणय पचौरी, और प्रणव मिश्रा जैसे चेहरे हैं। बताते हैं अदा शर्मा ने फिल्म के लिए एक करोड़ फीस ली है, जबकि बाकी कलाकारों ने 25-30 लाख रुपये। प्रोड्यूसर विपुल अमृतलाल शाह का दावा है कि सच्चाई को दिखाने के लिए उन्होंने इस फिल्म को बनाने का रिस्क लिया है। उन पर आरोप लग रहे हैं कि कर्नाटक चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए उन्होंने मुसलिम विरोधी फिल्म तैयार की तो उन्होंने जवाब दिया- हम तो इस पर 8 साल से काम कर रहे हैं। 
बताया गया है कि इस फिल्म् की कहानी दिल को दहला देने वाली, सच्ची 
घटनाओं पर आधारित है। लव जिहाद की खतरनाक साजिश लंबे समय से हिन्दुओं के खिलाफ रची जा रही है। फिल्म 4 युवतियों की जिंदगी पर बेस्ड है। कैसे कॉलेज जाने वाली 4 हिन्दू लड़कियां एक आतंकी संगठन से जुड़ जाती हैं। गायब होने वाली लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर पहले मुसलिम धर्म में लाया जाता है और फिर ISIS जॉइन कराया जाता है। सच्चाई ये है कि फिल्म में कही गई 95 फीसदी बातों की जांच में आज तक तसदीक नहीं हुई है। जहां तक आईएसआई की बात है केरल की 4 महिलाएं अपने पति के साथ 2016-18 में अफगानिस्तान के नंगरहार पहुंची थीं। उनके पति अफगानिस्तान में अलग-अलग हमलों में मारे गए थे।ये महिलाएं ISIS के उन हजारों लड़ाकों में शामिल थीं, जिन्होंने नवंबर और दिसंबर 2019 में अफगानिस्तान के अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
दूसरा सवाल क्या लव जिहाद के पीछे कोई संगठित गिरोह है?तो जवा ब है 
केरल हाईकोर्ट को 2009 में दिए अपने हलफनामे में केंद्र सरकार ने बताया कि लव जिहाद को लेकर देश में कोई संगठित गिरोह नहीं है। माना कि उस समय सोनिया गांधी वाली यूपीए सरकार थी- लेकिन उसके बाद भी पिछले 8 साल में न ऐसे कोई सुबूत सामने नहीं आए और न ही मोदी सरकार ने माना। 
फिल्म में कुछ कंट्रोवर्सियल डॉयलॉग भी रखे गए- जैसे अगले 20 साल में केरल इस्लामिक स्टेट  बन जाएगा। सच्चाई ये है कि केरल की कुल साढ़े तीन करोड़ आबादी का करीब 55 फीसदी हिन्दू, जबकि 27 फीसदी मुसलिम हैं, 18 फीसदी ईसाई हैं। 
एक महिला किरदार कहती है- अल्लाह आलवेज प्रोटेक्ट हिजाब गर्ल । यहां हिजाब को लेकर एक वर्ग की सोच दिखाई गई है, जो लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। इसी तरह भगवान शिव को लेकर भी कॉमेन्ट करवाए गए हैं। 
अब सवाल है कि फिल्म में जो दावे किए गए हैं वो सच हैं या झूठ। सबसे पहले क्या लव जिहाद हो रहा है तो जवाब है 2009 में मिली शिकायत के बाद 
एसआईटी की 24 टीमों ने घूम घूमकर जांच की- उनको कोई सुबूत नहीं मिला। हां, मुसलिम लड़के- हिन्दू लड़की या हिन्दू लड़के-मुसलिम लड़की जैसे लव मैटर्स सामने आते ही रहते हैं, लेकिन इसके पीछे कोई संगठित गिरोह है- जांच में आज तक साबित नहीं हुआ। इस एसआईटी ने 21 हजार 890 लड़कियों केसों की जांच की पाया कि सिर्फ 229 ने ही दूसरे धर्म के लड़कों से शादी की- उनमें से भी केवल 63 ने धर्म बदला। 149 हिन्दू लड़कियों ने मुसलिम लड़कों से, जबकि 38 मुसलिम लड़कियों ने हिन्दू लड़कों से शादी की। 20 ईसाई लड़कियों ने भी हिन्दू लड़कों से और 11 ने मुसलिम लड़कों से शादी की। इसके बाद 25 जून 2012 को केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने केरल  विधानसभा में बताया था कि 2006 के बाद 2,667 लड़कियों ने इस्लाम धर्म अपनाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने 15 जुलाई 2016 को केरल की इंटेलिजेंस रिपोर्ट के हवाले से बताया कि 
केरल में 2011 से 2015 के बीच 5,793 लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाया। 
 ये भी सच है कि ये आंकड़े कांग्रेस की यूपीए सरकार के जमाने के हैं तो 2016 में मोदी सरकार आने के बाद केरल हाईकोर्ट ने एक केस आने पर जांच के आदेश दिए- लव जिहाद का कोई केस नहीं मिला। 
फिल्म में आईएसआई के ज्वाइन करने की जो बात कही गई है उस पर बात करें तो 2014-15 में सुरक्षा एजेंसियों ने 17 भारतीयों की पहचान की, जिन पर ISIS में शामिल होने का संदेह था। उनमें से तीन केरल से थे। ये लोग मिडिल ईस्ट में काम कर रहे थे और 2013-14 में सीरिया चले गए।
मई-जून 2016 में महिलाओं और बच्चों समेत केरल के करीब दो दर्जन लोग ISIS में शामिल होने के लिए गए। जांच में ISIS के कासरगोड मॉड्यूल का पता लगा। जो लोग गायब हुए, उनमें से ज्यादातर उसी जिले के थे।
यानी केरल में धर्म परिवर्तन और ISIS में शामिल होने के मामले तो हैं, लेकिन ये सैकड़ों तो हो सकते हैं, लेकिन हजारों या 32 हजार तो बिल्कुल नहीं। 
द केरल स्टोरी वह फिल्म है, जो पूरे सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोर रही है. दावा किया जा रहा है कि युवा इसके धड़ाधड़ टिकट बुक करवा रहे हैं। 
सोशल मीडिया पर इसको लेकर बज क्रिएट हो चुका है- कोई इस पर रोक लगाने की मांग कर रहा है तो कोई हिन्दू लड़कियों को जागरूक करने वाली फिल्म बता रहा है। तो अब सवाल उठता है कि फिर फिल्म को रिलीज क्यों होने दिया गया, जब ये झूठ दिखा रही है- तो जवाब है कि हिन्दू धर्म के खिलाफ बातें करती दर्जनों फिल्में भी तो रिलीज होती ही रहती है। आमिर खान की पीके हो या अक्षय कुमार की ओह माई गॉड- कैसे हिन्दू भगवानों का मज़ाक बनाया गया- जब ऐसी फिल्में रिलीज हो सकती हैं तो फिर एक खतरे को आगाह करने का दावा करने वाली फिल्म को रिलीज करने में क्या दिक्कत है। फिर अगर आईएसआई को लेकर काल्पनिक ही सही अलर्ट किया जा रहा है तो होने दो- हां इसमें किसी धर्म को बदनाम करना ठीक नहीं। कला को रोका नहीं जा सकता, लेकिन बदनामी करने के लिए भी इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। जब मुसिलम पेंटर एम एफ हुसैन ने मां सरस्वती की नग्न पेंटिंग्स बनाकर अरबों रुपये कमाए थे, तब भी उन पर बैन नहीं लगा- कला के नाम पर तो अब भला कला को रोक के दायरे में क्यों लाया जाए। वैसे भी आजकल इंटरनेट के ज़माने में किसी भी तथ्य को आप बहुत लंबे समय तक छुपा या तोड़ मरोड़ नहीं सकते। हां सच्चे कंटेंट के 
नाम पर जो लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ होता है तो उस पर ज़रूर रोक लगनी चाहिए। तो फिल्म जिसको अच्छी लगेगी देखेगा, नहीं लगेगी तो नहीं देखेगा।
 
 

 



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