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लाइफस्टाइल | कौन है बोहरा मुस्लिम समुदाय, जिनके कार्यक्रम में पीएम मोदी ने की शिरकत. महिलाओं की खासियत
कौन है बोहरा मुस्लिम समुदाय, जिनके कार्यक्रम में पीएम मोदी ने की शिरकत. महिलाओं की खासियत
प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी ने दूसरी बार दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज के कार्यक्रम में हिस्सा लिया. वैसे वह जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी उनके एक कार्यक्रम में शिरकत कर चुके हैं. मोदी ने इंदौर में वर्ष 2018 में उनके बीच कहा था कि बोहरा समाज से उनका गहरा रिश्ता रहा है. उन्होंने तब इस मुस्लिम समुदाय से बड़ा समर्थन मिलने की बात भी कही थी.
बोहरा शब्द, गुजराती शब्द वोहरू व्यव्हार से आया है, जिसका अर्थ है “व्यापार”. बोहरा समुदाय के मुस्लिम आमतौर पर व्यावसाय से जुड़े हुए हैं.
बोहरा समाज के लोग मुस्लिम होते हैं लेकिन आम मुस्लिमों से थोड़े अलग. 20 लाख से ज्यादा बोहरा लोग महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कोलकाता, चेन्नई आदि स्थानों पर प्रमुख रूप से रहते हैं. बोहरा आम मुस्लिमों की तरह ही शिया और सुन्नी दोनों होते हैं. दाऊदी बोहरा शियाओं से ज्यादा समानता रखते हैं. वहीं सुन्नी बोहरा हनफी इस्लामिक कानून को मानते हैं.
पाकिस्तान, यूएसए, दुबई, अरब, यमन, ईराक आदि देशों में भी आबादी फैली है. बोहरा समाज में धर्मगुरु को सैय्यदना कहते हैं और सैय्यदना जो बनता है, उसी को बोहरा समाज अपनी आस्था का केंद्र बना लेता है.21 वें और अंतिम इमाम तैयब अबुल कासिम के बाद 1132 से आध्यात्मिक गुरुओं की परंपरा शुरू हुई, जिन्हें दाई-अल-मुतलक कहते हैं.
जब 52 वे दाई-अल-मुतलक सैयदना मोहम्मद बुरहानुद्दीन का निधन हुआ तो 2014 से बेटे सैयदना डॉ. मुफद्दुल सैफुद्दीन उत्तराधिकारी बने. सैफुद्दीन 53 वें दाई-अल-मुतलक हैं.
बोहरा मुसलमानों की उत्पत्ति
दाऊदी बोहरा मुसलमान फातिमी इमामों से जुड़े हैं जो पैगंबर मोहम्मद के प्रत्यक्ष वंशज हैं. 10वीं से 12वीं सदी के दौरान इस्लामी दुनिया के अधिकतर हिस्सों पर राज किया. ‘बोहरा’ गुजराती शब्द ‘वहौराउ’, अर्थात ‘व्यापार’ का अपभ्रंश है. वे मुस्ताली मत का हिस्सा हैं जो 11वीं शताब्दी में उत्तरी मिस्र से धर्म प्रचारकों के माध्यम से भारत में आया था.
1539 के बाद जब भारतीय समुदाय बड़ा हो गया तब यह मत अपना मुख्यालय यमन से भारत में सिद्धपुर ले आया. 1588 में दाऊद बिन कुतब शाह और सुलेमान के अनुयायियों के बीच विभाजन हो गया. आज सुलेमानियों के प्रमुख यमन में रहते हैं, जबकि सबसे अधिक संख्या में होने के कारण दाऊदी बोहराओं का मुख्यालय मुंबई में है.
दाऊद और सुलेमान के अनुयायियों में बंटे होने के बावजूद बोहरों के धार्मिक सिद्धांतों में खास सैद्धांतिक फर्क नहीं है. बोहरे सूफियों और मज़ारों पर खास विश्वास रखते हैं.
सुन्नी बोहरा हनफ़ी इस्लामिक कानून पर अमल करते हैं, जबकि दाऊदी बोहरा समुदाय इस्माइली शिया समुदाय का उप-समुदाय है. यह अपनी प्राचीन परंपराओं से पूरी तरह जुड़ी कौम है, जिनमें सिर्फ अपने ही समाज में ही शादी करना शामिल है. कई हिंदू प्रथाओं को भी इनके रहन-सहन में देखा जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय में नाबालिग लड़कियों के खतना (फीमेल जेनिटल म्युटिलेशन यानि कि एफएमजी) की प्रथा रही है. जिस पर सवाल भी उठते रहे हैं. इसे महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन कहा गया है.
बोहरा समुदाय में महिलाओं की स्थिति 20वीं शताब्दी की शुरुआत में बड़े बदलाव से गुजरी. भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिमों में सबसे अधिक शिक्षित महिलाओं में बोहरा समुदाय की महिलाएं हैं. अमेरिका और यूरोप में बोहरा महिलाएं कई व्यवसायों की मालिक, वकील, डॉक्टर, शिक्षक और नेता बन चुकी हैं.
दाउदी बोहरा समुदाय की पोशाक का एक अलग ही रूप है. पुरुष पारंपरिक तौर पर 03 सफेद टुकड़े वाले परिधान पहनते हैं, जिसमें एक अंगरखा होता है जिसे “कुर्ता” कहा जाता है, समान लंबाई का एक ओवरकोट जिसे “साया” कहा जाता है, और पैंट या पतलून जिसे “इज़ार” कहा जाता है.
पुरुष सफेद या स्वर्ण रंग की टोपी भी पहनते हैं, जिसमें स्वर्ण और सफेद रंग के धागे का प्रयोग किया जाता है.| बोहरा समुदाय के पुरुष में पैग़म्बर मोहम्मद के अभ्यास का पालन करते हुए पूरी दाढ़ी बढ़ाने की उम्मीद की जाती है.
इस समुदाय की महिलाएं एक दोहरी पोशाक पहनती हैं, जिसे “रिदा” कहा जाता है, जो हिजाब के अन्य रूपों से अलग है. रिदा अपने चमकीले रंग, सजावटी प्रतिरूप और फीते से तैयार होता है. रिदा महिला के चेहरे को पूरा कवर नहीं करता है. काले रंग को छोड़कर रिदा किसी भी रंग का हो सकता है. इसमें एक छोटा सा पल्ला होता है जिसे परदी कहा जाता है जो आमतौर पर एक तरफ मुड़ा होता है ताकि महिला का चेहरा दिखाई दे सके लेकिन ज़रूरत के अनुसार इसे चेहरे पर पहना भी जा सकता है.