सोमवार, 16 सितंबर 2024 | 01:51 IST
समर्थन और विरोध केवल विचारों का होना चाहिये किसी व्यक्ति का नहीं!!
होम | देश | अमित शाह से मिले बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, नए सियासी समीकरण

अमित शाह से मिले बिहार के पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, नए सियासी समीकरण



बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने एक बार फिर सियासी हलचल मचा दी है। नीतीश सरकार से समर्थन वापस लेकर 
हिन्दुस्तान अवाम मोर्चा के मुखिया मांझी एनडीए में शामिल होने की तैयारी करके दिल्ली पहुंच गए । 19 तारीख से इंतजार कर रहे मांझी और उनके बेटे संतोष सुमन की गृह मंत्री अमित शाह से दो दिन बाद मुलाकात हो पाई। गृहमंत्री अमित शाह ने उनको दोपहर का समय दिया और फिर इस मुलाकात में जीतनराम मांझी अपने बेटे और हम के अध्यक्ष बन चुके संतोष सुमन को लेकर पहुंचे हुए थे। बिहार बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय भी इस मीटिंग के दौरान मौजूद रहे। 
मांझी की अमित शाह से मुलाकात से पहले बिहार में सियासी हलचलें तेज हो गई थीं। सूत्रों का कहना है कि जीतन राम मांझी लोक सभा चुनाव में एनडीए का हिस्सा बनने से पहले बीजेपी के सामने अपनी कुछ डिमांड रख दी हैं। कहा जा रहा है कि इसपर दोनों नेताओं की सहमति के बाद ही आगे की रणनीति पर चर्चा होगी.
दरअसल जेडीयू के एनडीए से निकलने के बाद बिहार में बीजेपी अकेले रह गई थी. दलित और महादलित वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी को चिराग पासवान, पशुपति पारस के साथ साथ जीतन राम मांझी जैसे नेताओं की भी जरूरत है. बीजेपी की इस जरूरत को मांझी भी अच्छी तरह से समझते हैं. वैसे बीजेपी को चिराग और पशुपति पारस का समर्थन प्राप्त है. लेकिन बिहार के 4 फीसदी वोटों पर दावा रखने वाले 
जीतन राम मांझी को भी अपने साथ लेकर बीजेपी महागठबंधन के 16 प्रतिशत वोट बैंक में अपनी सेंधमारी करना चाह रही है. इसको लेकर नीतीश-तेजस्वी की धड़कनें बढ़ी हुई हैं। 
अमित शाह से मिलने से पहले मांझी ने अपने सियासी नफा नुकसान का गणित बैठा लिया था। वो तय करके आए थे कि अगर बीजेपी उनकी मांगें मान लेती है तो वे एनडीए में शामिल होंगे, नहीं तो थर्ड फ्रन्ट बनाकर लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और जो जीतेगा, उसके साथ मिल जाएंगे। इसलिए माांझी तगड़ी बारगेनिंग करने के मूड में थे। आइये जान लेते हैं कि मांझी की राजनीतिक पोटली में क्या है?
मांझी की राजनीतिक पोटली में कई तरह के प्रस्ताव थे। मांझी की सबसे बड़ी मांग ये है कि वे अब राज्यपाल का पद चाहते हैं। वैसे इससे पहले भी उनको राज्यपाल का पद ऑफर हुआ था, लेकिन तब वे खुद पार्टी अध्यक्ष थे और उनके एनडीए में जाते ही पार्टी बिखर सकती थी। अब उन्होंने अपने बेटे संतोष सुमन को पार्टी की कमान सौंप दी है, इसलिए खुद राज्यपाल बनने को तैयार हैं। नीतीश ने उनको अपनी पार्टी का विलय करने की शर्त रखी थी, जिसे उन्होंने मंजूर नहीं किया और संतोष सुमन ने मंत्री पद से इस्तीफा देकर सरकार छोड दी। बिहार के सियासी जानकार मांझी के पुत्र मोह को लालू यादव के पुत्र जैसा ही बता रहे हैं। मांझी भी बेटे को सेटल कराने के लिए किसी भी मोर्चे में शामिल होने को तैयार हैं। अमित शाह से उन्होंने अपने बेटे संतोष सुमन के लिए जमुई 
या फिर गया की लोकसभा सीट मांगी- लेकिन जमुई सीट फिलहाल चिराग पासवान के पास है, इसलिए अमित शाह ने इसका भरोसा नहीं दिया। ऐसी सूरत में मांझी ये आश्वासन चाह रहे थे कि एनडीए में आने के बाद सुमन की एमएलसी की कुर्सी बरकरार रहे। अभी सुमन के पास एमएलसी की सीट है जो 6 मई 2024 तक रहेगी, लेकिन महागठबंधन से अलग होकर एनडीए में शामिल होने पर सीट बनी रहे, गृह मंत्री अमित शाह को इस पर कोई एतराज नहीं है। 
इतना ही नहीं सूत्रों का दावा है कि जमुई के साथ ही जीतन राम मांझी गया, जहानाबाद, औरंगावाद और नवादा की सीटें भी मांग रहे हैं, लेकिन तीन से कम पर समझौता नहीं करेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव में जीतन राम मांझी यूपीए के साथ थे- और तब गया, औरंगाबाद और नालंदा लोकसभा से चुनाव लड़े थे पर तीनों सीटों पर  हार गए थे। मांझी ये भी वादा चाह रहे हैं कि अगर अगली बार एनडीए की सरकार बनती है तो बेटे  संतोष को केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिले। 
दरअसल मांझी को पता है कि इस समय बीजेपी, हर हाल में नीतीश-तेजस्वी के मुकाबले में खड़ा होने की कोशिशों में जुटी है, इसलिए उनका हाथ ऊपर है। इसका पूरा फायदा उठाने से वे चूकना नहीं चाहते। 
जीतन राम मांझी बिहार की अति दलित जातियों के 4 फीसदी वोटों पर पकड़ रखते हैं। ऐसे में बीजेपी को अगर महागठबंधन को बराबर की टक्कर देनी है तो एनडीए का विस्तार जरूरी है। अभी चिराग पासवान पूरी तरह से एनडीए में भी नहीं हैं। दूसरी ओर जीतन राम मांझी और बीजेपी दोनों ही नीतीश कुमार को अपना दुश्मन मानते हैं। ऐसे में दुश्मन का दुश्मन दोस्त हो जाये यह राजनीति का तकाजा है। जहां तक जीतन राम मांझी ने जिस थर्ड फ्रंट की तरफ इशारा किया है, वह बिहार की धरती पर संभव नहीं दिखता। ऐसा इसलिए कि महागठबंधन में सात महत्वपूर्ण दल शामिल हैं। थर्ड फ्रंट की कल्पना किस दल के आधार पर करेंगे। अगर वे बीएसपी के साथ थर्ड फ्रन्ट बनाते हैं तो बीएसपी तो 
बिहार की सभी 40 सीटों पर लड़ने की घोषणा पहले ही कर चुकी है। तो मांझी-अमित शाह की मुलाकात के बाद बिहार की राजनीति बदलने जा रही है। 

 



© 2016 All Rights Reserved.
Follow US On: