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मणिपुर में महिलाओं पर अत्याचार रोक पाने में सरकार 'लाचार' क्यों ?
नवीन पाण्डेय
मणिपुर की महिलाओं को नग्न करके घुमाने के शर्मनाक वीडियो के बाद देश और दुनिया में भारत का नाम बदनाम हो रहा है। संसद के मॉनसून सत्र
के शुरू के दो दिनों में लगातार विपक्ष ने हंगामा किया, जिसके चलते कोई कार्यवाही नहीं हो पाई। विपक्ष सदन में पीएम मोदी से बयान देने की मांग कर रहा है, जबकि सत्तारूढ़ बीजेपी का कहना है कि वे चर्चा के लिए तैयार है। मणिपुर की हिंसा पिछले तीन महीने से चल रही है, लेकिन वीडियो वायरल होने के बाद ये देश और दुनिया की नजर में आई। मणिपुर की सच्चाई केवल एक वायरल वीडियो से नहीं समझी जा सकती है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने सरकार पर धावा बोला है।
तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन
ये चुप्पी तोड़ी। उन्होंने वायरल वीडियो को शर्मनाक तो करार दिया, लेकिन
इसके साथ मणिपुर की बीजेपी सरकार के सीएम एम. बीरेन सिंह पर कोई कार्रवाई का वादा नहीं किया। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ और राजस्थान का नाम लेकर ये बताने की कोशिश की है कि इस तरह की समस्या सभी प्रदेशों में हैं, जिनकी हम निन्दा करते हैं।
मणिपुर में पिछले 83 दिनों से हिंसा जारी है। इस बीच, कुछ ऐसी वीडियो सामने आए हैं, जिसने पूरे देश को दहला दिया है। इस वीडियो में कुकी समुदाय की दो महिलाओं को नग्न करके सड़क पर घुमाते हुए दिखाया जा रहा है। ये वीडियो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी है। सोशल मीडिया पर लोग इसे देखकर तीखी प्रतिक्रया दे रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने केंद्र और राज्य सरकार को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है। चीफ जस्टिस ने यहां तक कह दिया कि या तो सरकार कार्रवाई करे, नहीं तो हम खुद इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे। उधर ममता बनर्जी तो लगातार हमले कर रही हैं।
लेकिन मणिपुर का मामला इतना आसान नहीं है। इसे समझने के लिए आपको इसका पूरा बैकग्राउंड जानना होगा, जिसकी जड़ों में दोनों समुदायों के साथ हो रही गहरी नाइंसाफी शामिल है। दरअसल, मणिपुर की राजधानी इम्फाल बिल्कुल बीच में है। ये पूरे प्रदेश का केवल 10% हिस्सा है, जिसमें प्रदेश की 57% आबादी रहती है। बाकी चारों तरफ 90% हिस्से में पहाड़ी इलाके हैं, जहां प्रदेश की 43% आबादी रहती है। इम्फाल घाटी वाले इलाके में मैतेई समुदाय की आबादी ज्यादा है। ये ज्यादातर हिंदू होते हैं। मणिपुर की कुल आबादी में इनकी हिस्सेदारी करीब 53% है। आंकड़ें देखें तो सूबे के कुल 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं। वहीं, दूसरी ओर पहाड़ी इलाकों में 33 मान्यता प्राप्त जनजातियां रहती हैं। इनमें प्रमुख रूप से नगा और कुकी जनजाति हैं। ये दोनों जनजातियां मुख्य रूप से ईसाई हैं। इसके अलावा मणिपुर में आठ-आठ प्रतिशत आबादी मुस्लिम और सनमही समुदाय की भी है। अब एक और नियम जान लीजिए, जो इस विवाद की जड़ में है।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 371C के तहत मणिपुर की पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा और सुविधाएं मिली हुई हैं, जो मैतेई समुदाय को नहीं मिलती। 'लैंड रिफॉर्म एक्ट' की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर बस नहीं सकता। जबकि जनजातियों पर पहाड़ी इलाके से घाटी में आकर बसने पर कोई रोक नहीं है। इसके कारण मैतेई हिन्दुओं को लगता है कि उनके साथ नाइंसाफी हो रही है। यहां ये ध्यान रखिए कि मौजूदा बीजेपी सरकार मैतेई हिन्दू वोटों के दम पर ही सत्ता में है, जो सीएम एम.बीरेन सिंह को पूरी तरह सपोर्ट करती है। शायद यही कारण है कि सीएम को अभी तक हटाया नहीं गया है।
मैतेई हिन्दुओं और नागा, कुकी आदिवासियों के बीच संघर्ष के तीन मुद्दे हैं।
पहला हिन्दू मैतेई को पहाड़ी इलाकों में ज़मीन न खरीदने का अधिकार, दूसरा मैतेई की खुद को एसटी में शामिल करने की मांग और तीसरा पहाड़ों के जंगली इलाकों में बसे नागा, कुकियों के अवैध कब्जों को हटाने की कार्रवाई। जैसे उत्तराखण्ड के जंगलों में जगह जगह मजार बनाकर अवैध कब्जे किए गए हैं, वैसे ही कब्जे नगा, कुकी लोगों ने जंगलों में कर लिए हैं। बांग्लादेश बॉर्डर से उनको खतरनाक हथियार मिलते हैं, यहां तक पाकिस्तान और चीन समर्थित कई गुट उनको हथियार और पैसा मुहैया कराते हैं, ताकि वे देश के खिलाफ लड़ सकें। इसी ताकत के दम पर आदिवासियों के कई गुट हिंसा पर उतारू हैं। वै मैतेई की बस्तियों में घुसकर नरसंहार करते हैं। ऐसे सैकड़ों नरसंहार हो चुके हैं। इन्हीं हिन्दू मैतेई की महिलाओं को भी निशाना बनाया जाता है। दोनों ओर से 150 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं,जबकि तीन हजार से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।
बताते हैं कि जिस समय ये आदिवासी गुट हमला करते हैं, उनकी ट्रेन्ड महिलाएं सुरक्षा बलों का ध्यान खींचने के लिए अलग से प्रदर्शन करती हैं। इसी को लेकर आदिवासी महिलाओं को लेकर भी हिन्दू मैतेई के मन में नफरत भर गई है, जिसका नतीजा उस शर्मनाक वीडियो में दिखाई दे रहा है, जिसकी भी भर्त्सना की जाए, कम है। किन्हीं और महिलाओं का गुस्सा उसी समुदाय की दूसरी मासूम महिलाओं से निकालना कहां का इंसाफ है। इस अपराध के लिए मैतेई के उस गुट को कतई माफ नहीं किया जा सकता। जो भी आरोपी हैं उन्हें कड़ी से कड़ी मिलनी चाहिए। वीडियो वायरल होने के बाद सरकार ने कई आरोपियों को गिरफ्तार भी किया। लेकिन सवाल उठता है कि पहले कार्रवाई क्यों नहीं की गई, जबकि खुद सीएम बीरेन सिंह कह रहे हैं कि ऐसी सौ से ज़्यादा हमलों की एफआईआर दर्ज हैं ।
अब सवाल उठता है कि सीएम बीरेन सिंह मजबूर हैं या जानबूझकर कड़ा कदम नहीं उठाते तो इसका जवाब ये है कि बीरेन सिंह को पता है कि उनकी सरकार हिन्दू मैतेई वोटों के दम पर है, इसलिए उनकी नीतियां एक पक्ष की तरफ झुकी हुई हैं। लेकिन दूसरा सच ये है कि नगा और कुकी आदिवासियों के पीछे कई ऐसे आतंकी गुट है, जिनको पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश से हथियार मिल रहे हैं। वे खुलआम घाटी में आकर हिन्दू मैतेई को मार रहे है। इस पर न कांग्रेस बोल रही है और बाकी लोग। सबको एक ही पक्ष दिख रहा है, जबकि पीएम मोदी को अंदर की सच्चाई पता है। वे जिस पद पर हैं, ज़्यादा बोल नहीं सकते। वैसे भी अगर बीजेपी ये कहती है कि नगा, कुकी को सरकार कंट्रोल नहीं कर पा रही है तो तब भी सवाल उठाएगा तो केन्द्र और राज्य में आपकी ही सरकार है, फिर भी आप इंसाफ नहीं दे पा रहे हैं। इसलिए पीएम मोदी ने चुप्पी साध रखी थी, हालांकि गृह मंत्री होने के नाते अमित शाह ने दौरा जरूर किया था। अब सवाल उठता है कि समस्या का समाधान कैसे निकले तो पहला तो ये है एक ही राज्य के सभी लोगों को ज़मीनें खरीदने का समान अधिकार मिलना चाहिए। जब कश्मीर में बाहरी लोगों को ज़मीन खरीदने का अधिकार मिल गया तो फिर मणिपुर में उसी राज्य के लोगों को अधिकार क्यों नहीं मिलना चाहिए। जहां तक मैतेई को आदिवासी दर्जा देने की बात है तो इस पर आयोग बने जिसकी रिपोर्ट के आधार पर फैसला हो। इसके अलावा पहाडी इलाकों से आदिवासियों के कब्जे हटाने की बात है तो अपराधी और आतंकी तत्व है, उनके खिलाफ कड़ी जरूरी है, लेकिन सामान्य आदिवासियों को जंगलों में अपनी रोजी रोटी चलाने से रोकना भी ठीक नहीं है। मणिपुर की बीजेपी सरकार को वोटों का लालच छोड़कर समान कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि पूरी दुनिया में देश की बदनामी को बचाया जा सके।