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सावन पर लाखामंडल में लगती है शिव भक्‍तों की भीड़, युधिष्ठिर ने स्‍थापित किए थे सवा लाख शिवलिंग


देहरादून। प्राचीन शिव मंदिर लाखामंडल वर्षभर शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। उत्तराखंड के देहरादून जनपद के चकराता ब्लाक से जुड़े ग्राम लाखामंडल में यह प्राचीन शिव मंदिर स्थित है।

शिव मंदिर लाखामंडल के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बारह मास खुले रहते हैं। सावन की महीने में श्रद्धालु यहां जलाभिषेक कर पूजा-अर्चना करते हैं। लाखामंडल में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व है।

मंदिर के पुजारी ने बताया कि पौराणिक काल से पांडवकालीन शिव मंदिर लाखामंडल की विशेष महत्ता है। यहां देश-विदेश से श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं। लाखामंडल के सेरा में प्राचीन लाक्षागृह गुफा मौजूद है। बताते हैं द्वापर युग में जब कौरवों ने पांडवों को जलाने की योजना बनाई थी तो उस वक्त इसी गुफा से पांडव माता कुंती के साथ सकुशल बाहर निकले थे। शिव मंदिर में आए श्रद्धालुओं की मनोकामना पूर्ण होती है।

 

 

मंदिर का इतिहास

  • यमुना के तट पर समुद्र तल से 1372 मीटर की ऊंचाई पर लाखामंडल शिव मंदिर स्थित है।
  • भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार नागर शैली में बने इस मंदिर का निर्माण पांचवी से आठवीं सदी में सिंहपुर के राज परिवार से संबंधित राजकुमारी ईश्वरा ने अपने पति चंद्रगुप्त (जो जालंधर के राजा क पुत्र थे) के निधन पर सद्गति एवं आध्यात्मिक उन्नति के लिए शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • लाखामंडल क्षेत्र में शिवलिंग का विशाल संग्रह है।
  • शिव मंदिर की ऊंचाई 18.5 फीट है।
  • एएसआइ को खोदाई के दौरान मिले छठवीं शताब्दी के एक प्रस्तर अभिलेख में इसका उल्लेख मिलता है।
  • लाखामंडल शिव मंदिर के संरक्षण का जिम्मा एएसआइ के पास है।
  • ये मंदिर बड़े शिलाखंडों से निर्मित है।
  • यहां मिले शिलालेख में ब्राह्मी लिपि व संस्कृत भाषा का उल्लेख है।
  • बताया जाता है चीनी यात्री ह्वेनसांग ने लाखामंडल की यात्रा की थी।
  • स्थानीय लोग इस मंदिर को पांडवकालीन समय का बताते हैं।
  • महात्म्य लोक मान्यता के अनुसार द्वापर युग में अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने कुछ समय जौनसार-बावर में गुजारा था।
  • बताया जाता है कि उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने यमुना के तट पर भगवान शिव की तपस्या कर सवा लाख शिवलिंग की स्थापना की थी।

 



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