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विचार | अब पहाड़ों पर नए मकान बनाना मुश्किल, ज़मीन कौड़ियों के दाम बिकेगी
अब पहाड़ों पर नए मकान बनाना मुश्किल, ज़मीन कौड़ियों के दाम बिकेगी
उत्तराखण्ड का जोशीमठ शहर बर्बाद हो रहा है। सैकड़ों घरों में दरारें आ चुकी हैं और जो बचे हैं उनमें भी दरारें आनी शुरू हो चुकी हैं। लगता नहीं कि कोई घर बचेगा। यानी जोशीमठ की बर्बादी बस अब समय की बात है। ऐसे में सरकार को एक पूरा शहर हटाकर किसी दूसरी जगह ले जाना पड़ेगा। सरकार ने जोशीमठ आपदा के लिए वैज्ञानिकों की जो जांच कमेटी बनाई थी, उसने अपनी रिपोर्ट दे दी है। एक्सपर्ट ने बताया है कि जोशीमठ की ज़मीन दरअसल भूस्खलन के मलबे से बनी है। यानी ऊपर से बहकर आई मिट्टी पर बने मकानों की नींव कमजोर है।
एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट में चौंकाने वाली बात यह भी कही गई है कि न सिर्फ यहां की जमीन कमजोर है, बल्कि इसके नीचे से हिमालय की उत्पत्ति के समय अस्तिस्त्व में आया ऐतिहासिक फाल्ट मेन सेंट्रल थ्रस्ट यानी एमसीटी भी गुजर रहा है, जिसके चलते यहां भूगर्भीय हलचल होती रहती है और पहले से कमजोर सतह को इससे अधिक नुकसान होता है। ''जियोलाजिकल एंड जियोटेक्निकल सर्वे आफ लैंड सब्सिडेंस एरियाज आफ जोशीमठ टाउन एंड सराउंडिंग रीजंस'' नामक रिपोर्ट में जोशीमठ की जमीन की पूरी क्षमता का विश्लेषण किया गया है। यह रिपोर्ट उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण समेत सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च आफ इंडिया, आइआइटी रुड़की, जीएसआइ व वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने संयुक्त रूप से तैयार की है।
हाल में सरकार को सौंपी गई इस रिपोर्ट में जोशीमठ की जमीन के पत्थरों की प्रकृति भी बताई गई है। इसमें कहा गया है कि ऐतिहासिक फाल्ट लाइन के दोनों तरफ के क्षेत्र हेलंग फार्मेशन और गढ़वाल ग्रुप्स में पत्थरों की प्रकृति समान है। ये पत्थर क्वार्टजाइट और मार्बल हैं, जिनकी मजबूती बेहद कम होती है। इन पत्थरों में पानी के साथ घुलने की प्रवृत्ति भी देखने को मिलती है।
जोशीमठ की जमीन का भीतरी आकलन किया जाए तो ऐतिहासिक फाल्ट लाइन एमसीटी के ऊपर मार्बल पत्थरों के साथ लूज (ढीला) मलबे की मोटी परत है और फिर इसके ऊपर जोशीमठ शहर बसा है। रिपोर्ट में मलबे की इस परत को भूस्खलन जनित बताया गया है, जिससे स्पष्ट होता है कि समय के साथ जो निर्माण कमजोर जमीन पर किए गए, वह अब ओवरबर्डन यानी क्षमता से अधिक बोझ की स्थिति में आ गई है। यही कारण है कि यहां की जमीन धंस रही है और भवनों पर दरारें गहरी होती जा रही हैं।
जोशीमठ की रिपोर्ट आने के बाद धामी सरकार के कान खड़े हो गए हैं और दूसरे शहरों को बचाने की रणनीति बनाई गई। सरकार ने फौरन एक सर्वे कराने का फैसला लिया है, जिसके तहत हर बड़े शहर की कैरिंग कैपिसिटी यानी आबादी का भार सहने की क्षमता का आकलन किया जाएगा। पहले चरण में नगर निगम, नगर पालिका, नगर पंचायत क्षेत्रों में सर्वे कराने की मंजूरी दे दी है। आबादी और बेतरतीब ढंग से हो रहे निर्माण कार्यों से पर्वतीय शहरों में धारण क्षमता से अधिक दबाव बढ़ रहा है। कैबिनेट की बैठक में तय हुआ कि पर्वतीय क्षेत्रों के सभी शहरों की धारण क्षमता का वैज्ञानिक व तकनीकी सर्वे कराया जाएगा। आपदा प्रबंधन विभाग को सर्वे कराने का दायित्व सौंपा गया है। इसके लिए शहरी विकास, पंचायती राज समेत अन्य विभाग का सहयोग लिया जाएगा। सर्वे के लिए तकनीकी एजेंसियों का चयन किया जाएगा।
इस सर्वे में अगर प्रमुख पर्वतीय शहरों जैसे मसूरी, नैनीताल, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, देवप्रयाग, उत्तरकाशी, ऊखीमठ, नई टिहरी, गुप्तकाशी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रानीखेत का नाम आ गया तो समझो, यहां नए मकान और दूसरी इमारतें बनाने पर रोक लग जाएगी। ये भी हो सकता है कि हर घर का सर्वे हो और जिसके मकान में दरार दिखें, उसे कहीं और बसने के लिए कहा जाए। ऐसे में तय है कि बची हुई ज़मीन बिकेगी नहीं और ज़मीनों के दाम गिर जाएंगे। इससे कारोबार बुरी तरह प्रभावित होगा। लेकिन बदलते दौर में पहाड़ की यही जरूरत है कि उस पर पड़ रहे भार को रोका जाए।