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विचार | मोदी को हराने के लिए कांग्रेस को 'ख़ून का घूंट' पीना होगा !
मोदी को हराने के लिए कांग्रेस को 'ख़ून का घूंट' पीना होगा !
2024 के लोकसभा चुनाव के महासंग्राम के लिए दोनों पक्षों की सेनाएं तैयार हो चुकी हैं। एक ओर जहां विपक्षी गठबंधन INDIA में अभी 26 पार्टिआं है तो मोदी के अगुवाई वाले एनडीए में 38 दल. बीजेडी, बीएसपी, टीडीपी, आरएसपी जैसे दलों ने अभी किसी का दामन नहीं थामा। इस लिहाज से देखें तो 2024 में देश की 543 लोकसभा सीटों में से 380 सीटों पर एनडीए और इंडिया के बीच सीधा मुकाबला हो सकता है, जबकि 138 सीटों पर
त्रिकोणीय मुकाबला, जिसमें 80 सीटें यूपी की भी हैं। तो सीधी लड़ाई वाली स्थिति सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए जहां बेहद चुनौतीपूर्ण होगी, वहीं त्रिकोणीय मुकाबले में उसे आसानी होगी, हालांकि किसी मोर्चे में नहीं शामिल 11 पार्टियों की मौजूदा लोकसभा में 91 सीटें हैं, इस लिहाज से इस थर्ड फ्रन्ट को कमजोर नहीं आंका जा सकता है। उधर विपक्षी गठबंधन को 100 सीटों पर तालमेल करने में खासी दिक्कत आएगी। गठबंधन को कामयाब करने के लिए कांग्रेस को खून का घूंट पीना होगा। मसलन पंजाब, दिल्ली, हिमाचल और गाज़ियाबाद में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच सीटों को लेकर जंग छिड़ सकती है। इन राज्यों में कांग्रेस को मन मारकर
अपनी आधी सीटें केजरीवाल को देनी ही पड़ेंगी, जिसमें उसकी पार्टी में तगड़ा अंसंतोष फैलेगा। उधर 80 सीटों वाले यूपी की बात करें तो मायावती के अलग लड़ने के फैसले ने तय कर दिया है कि त्रिकोणीय मुकाबला होगा।
यहां भी कांग्रेस को अखिलेश और जयंत के सामने सरेंडर करना होगा और ज़्यादा से ज़्यादा दस सीटों पर संतोष करना होगा। यह स्थिति बीजेपी के लिए बहुत फायदेमंद होगी। वैसे भी ओपी राजभर, निषाद पार्टी, अपना दल और दारा सिंह चौहान के कारण बीजेपी पूर्वांचल में बहुत मजबूत हो चुकी है। पश्चिम यूपी में अगर आरएलडी आ गई होती तो 80 सीटें पक्की हो जाती, लेकिन जयंत के न आने से पश्चिम बेल्ट में मुकाबला थोड़ा कठिन हो जाएगा।
बसपा प्रमुख मायावती के अकेले लड़ने के फैसले ने बीजेपी को खुश कर दिया। इसके बाद 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में त्रिकोणीय मुकाबला तय माना जा रहा है। 2019 में बसपा, सपा और रालोद ने साथ मिलकर भाजपा के सामने कड़ी चुनौती पेश की थी, इसके बावजूद भाजपा अपने सहयोगियों के साथ 64 सीटें जीतने में सफल रही थी। इस बार कांग्रेस, सपा और रालोद के गठबंधन वाले इंडिया और एनडीए के साथ ही बसपा भी अलग से मैदान में होगी। हर सीट पर बीएसपी जो वोट काटेगी, वो कहीं न कहीं एंटी इंमकमनवैंसी यानी सरकार से नाराज वोट होंगे, तो ऐसे में बीजेपी की राह आसान हो सकती है। इसी तरह ओडीसा में पहले की तरह नवीन पटनायक की अगुवाई वाला बीजू जनता दल किसी भी गठबंधन में शामिल नहीं होगी।
इसलिए 21 सीटों वाले ओडिशा में बीजद, भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला होगा। 2019 में बीजद ने 12 और भाजपा ने आठ सीटों पर जीत
दर्ज की थी, जबकि कांग्रेस को एक ही सीट पर संतोष करना पड़ा था। इस बार भी कमोवेश ऐसी ही स्थिति रहने की उम्मीद है। उधर दक्षिण के
17 लोकसभा सीटों वाले तेलंगाना में भी बीआरएस दोनों गठबंधनों से बाहर है और यहां भी बीआरएस, भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला तय है। 2019 में यहां बीआरएस नौ, भाजपा चार और कांग्रेस तीन सीटों पर जीती थी, जबकि एक सीट AIMIM को मिली थी, जो किसी गठबंधन में नहीं है।
गठबंधनों के दौर में सबसे रोचक मुकाबला विपक्षी इंडिया के दो साझेदारों के बीच केरल में होगा। यहां सीपीएम और कांग्रेस के राज्य स्तरीय गठबंधनों के बीच मुख्य मुकाबला होगा। 2019 में यहां भाजपा को 13 फीसद वोट के बावजूद एक भी सीट नहीं मिली थी।
जिन 380 सीटों पर राजग और विपक्षी इंडिया के बीच मुकाबला होना है, उनमें 100 सीटों के बंटवारे को लेकर घमासान हो सकता है। दिल्ली की सात, पंजाब की 13 और गुजरात की 25 सीटों के बंटवारे को लेकर आप और कांग्रेस के बीच इतनी आसानी से बात नहीं बनेगी। दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के स्थानीय नेता आप के साथ किसी भी तरह के गठबंधन का पहले से विरोध कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में जहां पंजाब में कांग्रेस को अच्छी सफलता मिली थी, वहीं विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को। तो ऐसे में सिटिंग एमपी का टिकट कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा। हालांकि गुजरात में दोनों ही पार्टियों की स्थिति बीजेपी के आगे कुछ नहीं है। इसी तरह आम आदमी पार्टी चार सीटों वाले हिमाचल प्रदेश, 10 सीटों वाले हरियाणा और दो सीटों वाले गोवा में भी अपना दावा ठोक सकती है। बहुत कुछ चार राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के चुनावों में कांग्रेस की क्या स्थिति रहती है, इस पर भी निर्भर करेगा। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस दोनों विपक्षी गठबंधन में शामिल हैं। देखना यह है कि राज्य में एक-दूसरे की विरोधी रही दोनों पार्टियों के बीच सीटों के बंटवारे को लेकर तालमेल कैसे बनता है, जबकि 42 सीटों वाले पश्चिम बंगाल में तलवारें पहले से खींची हुईं है।