. सड़क किनारे घर - कम दूकान वाली आमा ने इशारे से समझा दिया था कि पार सफेद मकान के नीचे वाले सैंण (सीधे) रास्ते पर चलके आगे दैंण तरफ पंडिज्यू का घर है .... किस्सी से पूछ लेना, बता देगा लेकिन तीन चार किलोमीटर उकाव - उलार (उतार चढ़ाव)के बाद भी न तो वह सफेद घर आया और न ही सैंण रास्ता जिसके दैंण तरफ पंडिजी रहते हैं । अब पूछें भी तो किससे.... भात खाने के टैम पर कौन मिलेगा बाहर ! दो , तीन घस्यारिनैं जाती दिखीं लेकिन घास के गढौव (बड़ा ढेर) तले मूॅंख लुका होने के कारण सुना , अनसुना जैसा हो गया और वे जीवन गति से चलती चलीं गईं। वास्कट पहने एक बुजुर्ग लट्ठी टिकाए बैठे मिले पर वे जरा भी कान नहीं सुनते थे । कितना भी जोर लगाकर चिल्लाओ वे मुस्कुरा देते बस .... निपट ट्वाल् (बहरे) हुए, पट्ट कान फुटी भ्या उना्र ! सौभाग्य से जीवन राम जी कारखाना बंद कर घर जा रहे होंगे तो चाचा को परेशानी में देखते हुए बोले .... इना्र पछिल बजर ले पड़ि जालो तो इनन पत्त नि चल ! नान्छिनानै कान फुटि ग्या ... कां हुंछी इलाज , को करछी ? खाल्ली खोर्-कपाइ केहिं करछां, तुम मैं बताऔ ,कै वां जा्ंण छ ? यो तो खालि भ्या, खांणा काव! गोरनां ग्वाव् लागि भ्या , आब्बै सूर्ज उथकै न्है जालो त सबन हकै ल्हीजा्ल ....... यतुकै सीप (सहूर)छ इनन, बस । .... इतनी देर बाद जाकर चाचा की समझ आया कि ये जन्मजात पक्के बहरे हैं । इशारों में बात करनी चाहिए थी.... नमस्कार के उत्तर में उन्होंने तुरन्त हाथ जोड़े और जी रया भी कहा है ।
. जीवन 'दा को बताया है कि एक भट् पंडित जी के घर जाना है । नाम सोचने लगे तो याद ही नहीं आया.... उं पंडिज्यू जो चिन्ह देखनीं, ब्या ठर्यूंनी ....
-- अरे तस कौओ कि "ब्याकर भट्" ज्यूनां वां जांण् छ कै ! तुम गलत बा्ट ऐ गोछा। इबा्ट त ठुलिधार पुजि जाला .... अब चाचा सही रास्ते पर चले हैं । संयोग से जीवन 'दा को भी उधर ही जाना था.... के काम छ ? चेली ब्या लिजी जांणोछा या च्योल बेऊंण छ ? ऐसे अनेक सवालों के जवाब में यही बताया कि पड़ौस के मांछी गांव से आए हैं। चिन्ह दिखाना है कि विवाह हो पाएगा या नहीं । लड़के - लड़की का स्वाम्मी बढ़िया होता है या साधारण काम चलाऊ है .... । बढ़िया हुआ फिर बढ़िया.... कहते हुए जीवन दा बताने लगे.... देखण चांण में त खानदानी लागणोंछा पर एक बात बतूं कि भट 'क चक्करन में झन पड़िया । च्याल , चेली तुमा्र देखी छन तो ठीक भै नन्तरी वी सांचि झन मानिया। डबल ल्ही बेरि उ बेमेल ले ठर्यै दिनेर भयै । आ्ब के बतूं ...... जसी च्योल डुन (पैरों में लचक) भये तो चेलि वालन तैं कौल कि अरे तुम के जांणछा ? लोगबाग द्वि खुटनैलि जतु हिटनीं उ एक्कै खुटैलि दौड़ जानेर भै। आ्ब जिन्दगी में सहा्र कै नि चैन पैं , तुम ले की चेली 'क सहा्र लिजी ब्या ठर्यूंण लागि रौछा नै ..... मैंस के समझनीं ,सिद सा्द भै त सोचनी, पंडित ठीक कूणों कै ! यसी कै चेलि कयीं सेड़ि (भैंगी) होली त कौल कि गजबै छ चेलि हो । जै घर जालि , सपाड़ि देलि । साक्षात लछिम भै लछिम .... तुम एक बा्र में एक चीज देखला पर उ द्वि - द्वि देखें । नै कूंछा त पत्त ल्ही जाऔ, आपणै आंखिन देखि आऔ।.... लाटनां (हकले, तोतले) लिजी कूनेर भ्यां कि मणी सोचि समझि बेरि सजौल कै बलां तो के हर्ज भै ? अरे वी कारबार देखौ, पुर गौं कमै ल्ही रौ रानौ ! द्वि हव बल्द , गोरू बाछा, फल - फूल, खेति - पाति देखौ , लोग - बागनां लगा्ड़ (भुखमरी)पड़ी भ्या... वी भतेर भकार ठस्स भरी छन ! और के चैं, तुमैरि चेलि राज करैलि राज .... ततु तारीफन में को नि आल हो झा्ंस में ! पछा के हुं , के नै! वाकदान बजर पड़ि रयी भ्यो, आ्ग हाल्याल ता्स वाकदानन कैं जो चेली जिन्दगी नरक बड़ै दिनीं.... सिबौ, गोठ्- गोबर है ले पर - पर है जनेर भै नान्तिननै जिन्दगी !
. अब चाचा को पंडित जी का सही नाम दिवाकर भट् भी याद आ गया है । दरवाजे से धाल लगाई.... ओ पंडिज्यू, नमस्कार हो , घरै छौ के ..... आ जाओ भीतर आ जाओ। वहां क्यों खड़े हो .... देहरी से ऊपर चाचा ने बैठक में देखा तो वहीं से नमस्कार कहा है । बा - बा हो यो हड़ पंडित छै या राक्षस ? बांज 'क गिन जस काओ का्व .... ढ्योर खद्दू लागों , कस पंडित हुन्योल ..... देखण न चांण, के ल्याकत त हुनीं यमै । असमंजस से उबर नहीं पाए फिर भी विनम्रता पूर्वक पूछा.... आप ही मान्यवर दिवाकर भट्ट जी हैं ? ... हां , हां बताओ ? कैसे आना हुआ , बड़ी दूर से आए हो लगता है .... आवाज दी, भीतर से बालक पानी और चार कणिंक मिसरी रख गया । भर पेट पानी पिया, जान में जान आई तो दोनों कुंडली सामने रखते हुए कहा कि बड़ा नाम सुना है आपका ! चिन्ह स्वाम्मी कराने में आपकी बराबरी कहीं नहीं तो सोचा इधर - उधर भटकने से क्या फायदा ? सीधे आपके पास चलें और फाइनल कर लें । आप कमी - बेसी सुदारते ही नहीं, उपाय भी बताते हैं बल । कैसै - कैसे ब्या ठर्यै दिए आपने ....
--- हो गया, हो गया खाली तारीफ नहीं करनी चाहिए । इष्ट देवों की आशीष है सब ... । किसी का काम बन जाए तो क्या जाता है अपनी जेब से .... तुम्हारा लड़का है या लड़की के उत्तर में चाचा ने बताया कि मेरा भाई है और उसके लिए लड़की का चिन्ह आया है । ठीक , ठीक कहते हुए पंडित जी ने बताया कि माछी गांव वाले हमारे यजमान हुए तो चाचा की हवा मुच गई। अच्छा हुआ जो यह नहीं पूछा कि किसके लड़के हो , बड़बाज्यू का नाम क्या है आदि , आदि.... वरना क्या बताते ?
. दोनों कुंडली देखकर पंडित जी ने बताया है कि 23.5 गुण मिलते हैं। लग्न का मंगल भारी है तो लड़की के ग्रह थोड़े तेज हैं । लड़के का चन्द्र से हल्का मंगल दोष बनता है तो विवाह में अड़चन आ सकती है । बाकी सब ठीक है पर मेरी राय पूछोगे तो साफ " ना " हुई और कहोगे तो एक से एक लड़कियां बता दूंगा तुम्हारे भाई के लिए और बढ़िया ठर्या भी दूंगा ..... चाचा की सिरी उड़ गई ! मन तो आया कि साफ कह दें... साले, तेरे पास ना सुनने थोड़ी आया हूॅं। पैसे ले जो चाहिए पर कुंडली सही भिड़ा, बदलनी है तो बदल दे मेरी .... वैसे ही कागज में बनाना ! लेकिन सहज होकर बोले .... पंडिज्यू ,आ्ब तुमन छैं के लुकूंण है रौ । असल में त म्योर भै छ। क्याप लब - हबौ चक्कर छ जऊंण , तुम जाणनेरै भया अच्छयान्नां लौंड - मौडन कैं । भै कूं कि ब्या करुनो तो यैका दिगा नन्तरी जोगी जून, अणब्याय्यै रुंन कै .... के धा्न करुं, कस जमा्न आ .... के उपाया न्हांति कौ ? . अभी तक हिंदी में चल रहे ब्याकर भट् जी भी कुमाऊंनी में आए तो बात बनते देर कहां लगती ..... ततु चिंता बात न्हाॅं , सब उपाय भै..... कलियुग केवल प्रेम अधारा, सुमिरि सुमिरि नर उतरीं पारा । तुम ले के लागि रौछा, भोल द्वियै है भाजि जाला तो के करला ? भज्जू ब्या में कोर्ट ले के नि कर सकनि .....
-- होय होय , के उपाय करना कन पैं । यौस करिया कि चेलि वा्ल ले कती स्वाम्मी करावो त चूं ले नि करि सकौ ।
-- तुम निशाखातिर रौओ। फीस - हीस पछा समझ ल्हीया । चेली चिन्ह में खचर - बचर ठीक नि भै , वी बा्ब समझ जा्ल पर तुमा्र में है सकैं , कस रौल ?
-- पर भोल के गड़बड़ नि है जाऔ, ध्यान धरिया ...
-- अरे तुम ले कां लागी भया ! के करण न्हाॅं.... मणीं केतु कैं टिपि बेरि मंगल'क दगाड़ बैठूंण छ बस और मूं यौस बैठै दियूंन कि तुम बनारस वा्ल ठुल कृष्णानंद शास्त्री ज्यूंन ले देखै ल्हीया... उं ले नि भांपि सक कि कैले चिन्ह खचबचै राखौ कै । औरन जै जो पुछों हो , आंख् फोड़ि बेरि ले नि समझ सक ..... जां तलक चेली ग्रहनै बात छ त प्रतिमा विवाह करै दिया , बस यतुकै करण छ ... । मतलब कि तुम भी कहां परेशान हो रहे हो ! कुछ नहीं करना है .... थोड़ा केतु को उठाकर मंगल के साथ बैठाना है बस और मैं ऐसा बैठा दूंगा कि बनारस वाले बड़े कृष्णानंद शास्त्री जी भी नहीं समझ पाएंगे कि कुंडली के साथ छेड़छाड़ की गई है । औरों को कौन पूछता है , आंख फोड़कर भी कुछ नहीं समझ पाएंगे .... जहां तक कन्या की बात है तो एक प्रतिमा विवाह कराना पड़ेगा बस , इतना ही करना है ...... अब चाचा भी भली प्रकार से समझ गए थे कि पंडित दिवाकर भट् जी को लोग यों ही नहीं " ब्याकर भट् " कहते होंगे ।
ज्ञान पन्त जी के फेसबुक से साभार