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साहित्य | उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच की बैठक में फैसला, इस बार गढ़वाली, कुमाउंनी के साथ नाटक और लोकगीत भी
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच की बैठक में फैसला, इस बार गढ़वाली, कुमाउंनी के साथ नाटक और लोकगीत भी
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली द्वारा 9 अप्रैल, 2023 को डीपीएमआई सभागार न्यू अशोक नगर में आयोजित बैठक में आगामी 14 मई, 2023 से शुरू होने वाली गढ़वाली, कुमाउनी ग्रीष्मकालीन कक्षाओं के सुचारू रूप से संचालन हेतु समाज सेवियों एवं साहित्यकारों की एक अहम बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें आगामी सत्र में गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं के साथ-साथ बच्चे गढ़वाली एवं कुमाउनी नाटक एवं लोकगीत भी सीखेंगे। इस हेतु श्रीमती लक्ष्मी रावत एवं डॉ कुसुम भट्ट व मनोरमा तिवारी भट्ट नाटक एवं लोकगीतों के क्षेत्र में बच्चों को पारंगत करेंगी।
बता दें कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच सन् 2016 से दिल्ली एनसीआर व उत्तराखण्ड के श्रीनगर व देहरादून आदि शहरों में गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं के कक्षाओं का आयोजन करता आ रहा है।
सुप्रसिद्ध उद्यमी एवं उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ विनोद बछेती जी ने बताया कि हमारी कोशिश है कि हम दिल्ली एनसीआर में रह रहे नौनिहालों को अपनी मातृ भाषाओं के साथ-साथ नाटकों एवं लोकगीतों से भी अवगत करवायें। डॉ बछेती ने बताया कि गढ़वाली, कुमाउनी, जोनसारी भाषाओं में आज लगातार साहित्य सृजन हो रहा है तथा हर विधा में साहित्य उपलब्ध है इसलिए सुधी पाठकों और नई पीढी का रूझान अपनी भाषाओं के प्रति बढे इस दिशा में भाषा कक्षाओं के माध्यम से हमारा प्रयास जारी है।
गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों के क्षेत्रों में बच्चों को पारंगत करने के लिए थियेटर आर्टिस्ट लक्ष्मी रावत,गायिका डॉ कुसुम भट्ट एवं मनोरमा तिवारी भट्ट ने जिम्मेदारी ली है। जिनके सानिद्धय में बच्चे गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों की बारीकियां सीखेंगे। आपको बता दें कि उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच वर्ष 2016 से दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तराखंड के कई शहरों में बच्चों को अपनी भाषा-बोली के प्रति जागरूक करते हुए गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषाओं की कक्षाओं के माध्यम से अपनी भाषा-बोली को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित कर रहा है। इसी का सफल परिणाम भी हैं कि आज अपनी माटी-थाती से दूर रहते हुए भी पहाड़ के बच्चे अपने समाज और अपने घरों में अपनी भाषा-बोली में बात कर रहे है।
उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच के संरक्षक एवं समाजसेवी डॉ.विनोद बछेती जी गढ़वाली-कुमाउनी-जौनसारी भाषा के संरक्षण के लिए जिस पताका को लेकर चल रहे है। उसके नीचे आज पहाड़ की युवा पीढ़ी अपनी भाषा-बोली से तो जुड़ ही रही हैं,साथ ही अपने रीति-रिवाज और संस्कारों को भी नये कैनवास पर उकेर रही है। जिसका श्रेय निश्चित तौर पर उन सभी प्रबुद्धजनों को जाता है,जो अपने नौनिहालों को अपनी भाषा-बोली के प्रति जागरूक कर रहे है।
उत्तराखंड लोक-भाषा साहित्य मंच के संरक्षक डॉ.विनोद बछेती जी इस बारे में बताते है कि बहुत अजीब लगता है जब हम बहुत से पहाड़ के लोगों एक साथ खड़े हों और हम अपनी भाषा-बोली में बात न करें। इस तरह के माहौल में मैं खुद को बहुत असहज महसूस करता हूं। इस धारणा को बदलने के लिए हमने दिल्ली एनसीआर में रह रहे नौनिहालों को अपनी मातृ भाषा से जोड़ने के लिए गढ़वाली-कुमाऊंनी और जौनसारी की ग्रीष्मकालीन कक्षाओं की शुरूआत की,इसके लिए हमारे समाज का एक बड़ा तकबा हमारे साथ खड़ा हुआ और मुझे कहने में खुशी होती है कि हमारे नौनिहाल अपनी भाषा-बोली में बात करते है,अपने संस्कार-रीति-रिवाजों को जानते है और इस कड़ी में हम अब हम एक और नई पहल करने जा रहे है। जिसके तहत हम बच्चों को अब गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों की बारिकियों को भी सिखाएंगे और मुझे पूरी उम्मीद हैं कि जिस प्रकार हमारे बच्चों ने गढ़वाली-कुमाउनी भाषा-बोली के प्रति अपना रूझान दिखाया। उसी प्रकार हमारे बच्चे गढ़वाली-कुमाउनी नाटक एवं लोकगीतों को जानने-समझने में भी रूचि दिखाएंगे।
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच के संयोजक साहित्यकार दिनेश ध्यानी जी ने बताया कि मंच की कोशिश जहां गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करवाना भी है वहीं भावी पीढी को अपनी भाषा एवं सरोकारों से जोड़े रखना भी है। इस दिशा में मंच लगातार प्रयास कर रहा है। समय-समय पर सेमिनार एवं गोष्ठियों के माध्यम से नई पीढी को जोडने का प्रयास किया जा रहा है। मंच के इन प्रयासों को जनता का भरपूर समर्थन मिल रहा है। आज की बैठक में भी केन्द्र सरकार से यह मांग पुनः की गई कि सरकार गढ़वाली, कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करे।
इस बैठक में साहित्यकारों में सर्वश्री रमेश चन्द्र घिल्डियाल, दर्शन सिंह रावत, जगमोहन सिंह रावत जगमोरा, उमेश बन्दूणी, जयपाल सिंह रावत, अनिल पन्त, दिनेश ध्यानी, श्रीमती लक्ष्मी रावत, श्रीमती मनोरमा भट्ट, अनूप सिंह नेगी खुदेड़, अनूप सिंह रावत, वीरेन्द्र जयाल उपरि, आदि ने भाग लिया।