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सेहत | जहां कोई डॉक्टर रहना नहीं चाहता वहां पहाड़ी मरीजों की सेवा में जुटे हैं डॉ. रंगलाल यादव
जहां कोई डॉक्टर रहना नहीं चाहता वहां पहाड़ी मरीजों की सेवा में जुटे हैं डॉ. रंगलाल यादव
पहाड़ से पलायन बढ़ने का एक बड़ा और मुख्य कारण यहाँ के अस्पतालों में यहीं के मूल निवासी डाक्टर भी काम नहीं करना चाहते। ऐसे में यहाँ वे लोग जो पलायित नहीं हैं, उनकी स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए जो डाक्टर यहाँ अपना योगदान देते हैं, उन्हें जनता का बहुत प्यार और सम्मान मिलता है। यों तो डाक्टर को भगवान का ही रूप कहा गया है, लेकिन पहाड़ की विषम परिस्थितियों में भी शहरों की सुख सुविधाओं का मोह छोड़ कर सालों से यहां के वाशिन्दों की सेवा में लगे फीजियो थैरेपिस्ट कन्सल्टेंट श्री रंगलाल यादव अपने मरीजों के लिए भगवान का सा ही दर्जा रखते हैं। ये हम नहीं कह रहे, ऐसा मरीजों का कहना है।आइये आज आपको मिलाते हैं मरीजों के ऐसे ही भगवान फीजियो थैरेपिस्ट कन्सल्टेंट श्री रंगलाल यादव जी से, जो अपने अब तक के जीवन में लकवा सहित नसों व हड्डियों की बीमारी के 50 हजार से अधिक रोगियों को राहत पहुंचा चुके हैं।
उत्तराखंड में रूद्रप्रयाग जनपद के सौड़ी, गिंवाला गाँव स्थित हैल्पेज इण्डिया उत्तराखंड के हास्पिटल में कार्यरत कन्सल्टेन्ट फिजियोथैरेपिस्ट रंग लाल यादव के सम्पर्क में अब तक जो भी मरीज आया है, उसने उन्हें इस विधा का भगवान ही कहा है। और तो और अस्पताल में कार्यरत अन्य कर्मचारी भी उन्हें किसी महामानव से कम नहीं मानते।
बहुत पैसा खर्च करने के बाद ठीक होने वाले लकवा जैसी खतरनाक बीमारी का इलाज डा० रंगलाल यादव हैल्पेज इंडिया उत्तराखंड नामक संस्था द्वारा सुलभ करवाए गये उपकरणों से निःशुल्क करते हैं, इसके लिए वे किसी भी मरीज से एक पैसा नहीं लेते, उल्टे बहुत से गरीबों को वे अपनी जेब से आने-जाने का खर्चा अलग से देते हैं।
कन्सल्टेंट फिजियोथैरेपिस्ट रंगलाल यादव जी ने बताया कि केदारनाथ आपदा के बाद वे किसी मित्र की सलाह पर फाटा (रूद्रप्रयाग) में आये थे, तब फाटा में सिर्फ एक बेड के अस्पताल से ये सेवा कार्य प्रारंभ हुआ था। वर्ष 2015 में सौड़ी में 16 बेड का अस्पताल बन जाने के बाद वे यहाँ आ गये और तब से यहीं पर लकवाग्रस्त मरीजों की सेवा में लगे हैं।
फीजियोथैरेपिस्ट कन्सल्टेंट श्री रंगलाल यादव जी ने बताया कि बारहवीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उनके पारिवारिक जनों ने अपने किसी जानकार आर्थोपैडिक सर्जन की सलाह पर फीजियोथैरेपिस्ट बनने के लिये प्रेरित किया। वर्ष 2004 में उन्होंने देहरादून के बिहाइब कॉलेज में फीजियोथैरेपी की पढ़ाई के लिए दाखिला लिया। 2009 में पढ़ाई पूरी कर काठमांडू के बड़े और जाने-माने "बीर हास्पिटल" से उन्होंने अपनी इन्टर्नशिप पूरी की। इन्टर्नशिप पूरी करने के बाद उन्होंने डॉ०अजय यादव (जो अब कनाडा में हैं) के हास्पिटल में उनके निर्देशन में काठमांडू में ही काम शुरू किया।श्री यादव आगे बताते हैं कि यहाँ पर रहकर मैंने डा० अजय यादव के निर्देशन में, इस विधा की बारीकियों को सीखा। जब डा०अजय यादव जी को लगा कि मैं इस विधा में काफी कुछ अनुभव ले चुका हूँ तो उन्होंने मुझे विराट नगर के अपने दूसरे हास्पिटल में फीजियोथैरेपि के हेड के रूप में नियुक्त कर दिया, जो उन्होंने हाल में ही (तब) खोला था। 2009 से 2012 तक मैंने इस हास्पिटल में रहते हुए लगभग रोजाना 60 से 70 मरीजों को अपनी सेवायें दी। अचानक 2012 में मुझे लगा कि अभी और कुछ पढ़ाई करनी चाहिए, जिसके लिए मैं देहरादून लौट आया। लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था, अपने किसी रिश्तेदार के कहने पर एक छोटी सी जगह (एक कमरे) से मुझे हास्पिटल प्रारंभ करना पड़ा, लेकिन बहुत कम समय में ही यहाँ भी मरीजों की संख्या प्रतिदिन 60 से अधिक पहुंच गई। अभी हास्पिटल को बड़ा करने की कवायद चल ही रही थी कि अचानक जून 2013 में केदारनाथ आपदा ने पहाड़ के जन जीवन को तहस-नहस कर डाला। अपने एक जूनियर (मित्र) की सलाह पर देहरादून का अपना क्लिनिक एक दूसरे दोस्त के हवाले कर मैं पहाड़ की पहली बार यात्रा करते हुए फाटा पहुँचा। आपदा से प्रभावित बहुत से स्थानीय लोगों और बाहरी यात्रियों से मुलाकात और बातचीत करने के बाद लगा कि लोगों को आपदा के दृश्यों से गहरा आघात लगा है, ऐसे में उनकी काउन्सिंलिग की बहुत बड़ी जरूरत है, साथ ही ऐसे प्रभावित लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से भी सहायता की जरूरत है।बस इसी भावना के वशीभूत होकर मैंने 18 नवम्बर 2013 को मैंने सामाजिक संस्था हैल्पेज इण्डिया के एक छोटे से हास्पिटल में योगदान देना प्रारंभ किया। जब 2015 में एन डी टी वी (प्रसिद्ध समाचार चैनल) के सहयोग से गिंवाला (चन्द्रापुरी) में 18 बेड का स्वास्थ्य एवं नैदानिक केन्द्र (अस्पताल) खोला गया, जिसे केदारघाटी वृद्ध ग्राम नाम दिया गया में, मैं योगदान हेतु आ गया। यहाँ पर विशेषकर लकवाग्रस्त मरीजों का इलाज किया जाता है।
श्री रंगलाल यादव जी के लगभग 30 मरीजों से प्रत्यक्ष बात करते हुए कालीमठ के लगभग 78 वर्षीय पूर्व प्रधान छोटिया लाल,83 वर्षीय हरि सिंह, 53 वर्षीय गढ़वाल श्रीनगर के सुमन सिंह नेगी, 50 वर्षीय दीपा देवी,आदिने बताया कि उनके द्वारा विभिन्न अस्पतालों में मंहगे से मंहगे इलाज के बाद जब उन्होंने रंगलाल यादव के बारे में सुना। उन्होंने यहाँ आकर अपना इलाज करवाया तो उन्हें आश्चर्यजनक रूप से इच्छित परिणाम मिले। अगस्त्यमुनि की पूर्व जिला पंचायत सदस्य दीपा देवी ने बताया कि जुलाई 2020 में हृदयाघात के कारण लकवाग्रस्त होने पर उन्होंने देहरादून के एक नामी अस्पताल में प्राथमिक इलाज करवाया, लेकिन उन्हें डा० यादव की सेवा पर पूर्ण विश्वास था तो वापस आकर उन्होने रंगलाल यादव से इलाज प्रारंभ करवाया, एक महीने से कम समय में ही वे 95 फीसदी पहले की ही तरह स्वस्थ हो चुकी हैं।
ऐसे ही ल्वारा (गुप्तकाशी) के 11वर्षीय देशराज के हाथ पावों ने अचानक काम करना बंद कर दिया तो देशराज के पिता जी ने गुप्तकाशी, रूद्रप्रयाग, श्रीनगर, देहरादून के बड़े और नामी गिरामी अस्पतालों का रूख किया, लेकिन देशराज की परेशानी में बहुत ज्यादा कमी नहीं आई। देशराज को गिलियन बैरे सिंन्ड्रोम नामक बीमारी हो गई थी। आखिर किसी मित्र की सलाह पर देशराज के पिता उसे हेल्पेज के गिंवाला स्थित इस हॉस्पिटल में लाये। इसे देशराज के पिता की आस्था कहें या डॉ० रंगलाल यादव की मेहनत का कमाल कि दो माह के इलाज के बाद देशराज पूर्ण स्वस्थ होकर घर लौटा। आज देशराज अपने दोस्तों के साथ बीमारी से पहले की ही तरह दैनिक कार्य और अपने खेल, क्रिकेट आदि खेल रहा है।ऐसे ही 36वर्षीय सुरेन्द्र किसी टी वी चैनल की न्यूज के आधार पर बाइक से एक्सीडेंट होने के बाद गिंवाला पंहुच कर इलाज करवा रहे हैं। मूलत उत्तर प्रदेश के रहने वाले सुरेन्द्र ने बताया कि बाइक से एक्सीडेंट होने पर रीढ़ की हड्डी (बैकबोन) में फ्रैक्चर हो गया। आप्रेशन तो हुआ लेकिन पैरों को लकवा ने जकड़ लिया और पैर बिल्कुल सौ प्रतिशत सुन्न हो गये। किसी भुक्त भोगी और गिंवाला में इलाज करवा चुके मित्र की सलाह पर सुरेन्द्र यहां पहुंच कर इलाज करवा रहे हैं।अभी इलाज के दौरान सुरेन्द्र कैलिपर और वॉकर की सहायता से चलने लगा है। आशा है कि जल्दी ही सुरेन्द्र पूर्णतः चलने फिरने लगेगा। नेपाल के मूल निवासी यादव इससे पहले काठमांडू, दून जैसी सुविधाजनक जगहों पर काम कर चुके थे। बचपन से ही गरीबों के लिए मन में सेवाभाव रखने के कारण उन्होंने पहाड़ को अपनी सेवाओं के लिए चुना। खाली होते पहाड़ के लोगों के बीच सुविधा सम्पन्न महानगरों से आकर सेवा भाव से बीमारों की तीमारदारी में लगे डा० रंगलाल यादव सरीखे व्यक्ति यहाँ के लोगों के लिए किसी भगवान से कतई कम नहीं।मरीजों की सुविधा को देखते हुए अब शांय व अवकाश के दिनों में डॉ० रंगलाल यादव ने अगस्त्यमुनि इण्टर कॉलेज के नजदीक भी अपनी सेवाएं देनी प्रारंभ कर दी हैं, जहाँ पर मरीज व तिमारदार आसानी से पहुँच रहे हैं।
लेखक-
हेमंत चौकियाल
रा0उ0प्रा0वि0डाँगी गुनाऊँ
Mail-hemant.chaukiyal@gmail.com