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विचार | बिहार में बागेश्वर सरकार का जबरदस्त क्रेज
बिहार में बागेश्वर सरकार का जबरदस्त क्रेज
बिहार की राजधानी पटना से करीब कुछ ही दूरी पर सजे बाबा बागेश्वर के
दरबार में हर दिन आठ से दस लाख लोग जुटे, जिससे बीजेपी की तो बांछे खिल गई, लेकिन आरजेडी के होश उड़ गए। शायद इसीलिए लालू यादव के बड़े पुत्र तेज प्रताप ने बाबा के प्रभाव को कम करने के लिए विरोध की राजनीति शुरू की, इसका उल्टा असर हुआ और भीड़ बढ़ने लगी। अब सवाल उठता है कि क्या बागेश्वर बाबा की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि वे लंबे समय से चली आ रही बिहार की जातिगत समीकरणों को तोड़ सकते हैं। क्या आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री का इतना प्रभाव है कि वे हिन्दुस्तव की अपील करेंगे और बिहार के जातीय खांचे में बंटे लोग एक होते जाएंगे। अगर दस फीसदी भी ये हो गया तो समझिए बिहार में नीतीश-तेजस्वी की सरकार पलटनी तय है, क्योंकि बीजेपी बहुत सही तरीरे से आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री का इस्तेमाल करती लग रही है।
बाबा बागेश्वर के बिहार आने से पहले ही उनके दरबार को लेकर विरोध होने लगा था। लालू की पार्टी ने खुलकर आचार्य धीरेन्द्र शास्त्री का विरोध किया तो बीजेपी ने खुलकर समर्थन किया। अलबत्ता आचार्य शास्त्री ने सबको निमंत्रण भेजा। बाबा की कथाओं में इतनी भीड़ जुटने लगे कि सियासतदांन घबराने लगे। अपने समर्थकों को संदेश देने के लिए बाबा को बीजेपी का पिट्ठू तक कहा गया, लेकिन सब बेकार- भीड़ का आलय ये रहा कि बिहार में किसी फिल्म स्टार को देखने के लिए भी इतना क्रेज नहीं दिखता है।
बागेश्वर बाबा के पटना दरबार में प्रतिदिन आठ से दस लाख लोगों के पहुंचने का दावा किया जा रहा है। हाल ये था कि दरबार जाने वाले रास्तों पर जगह जगह जाम लग रहा था। पंडाल से चारों ओर दूर-दूर तक फैला जनसैलाब किसी भी राजनीतिक दल की नींद खराब करने के लिए पर्याप्त था, जो अपनी सभाओं में भीड़ जुटाने के लिए महीनों कड़ी मेहनत करते हैं और पैसा खर्च करते हैं। इसके बाद भी कोई राजनीतिक दल इस तरह की जनसभा एकत्र करने में असफल ही रहता है। कहा जा रहा है कि बाबा अपनी जनसभाओं में हिंदू एकता और हिंदू राष्ट्र के जिन मुद्दों को उठाते रहे, उससे नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की जातिगत समीकरणों पर टिकी राजनीति को खतरा हो सकता है। पटना दरबार पर राजनीतिक विवाद होने के बीच मुजफ्फरपुर में बाबा का एक और दरबार लगाने की तैयारी भी शुरू हो गई है।
बागेश्वर धाम के प्रमुख पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री अपने दरबार में जिन मुद्दों को उठाते हैं, वे भाजपा की राजनीति को सूट करते हैं। वे जातिगत बंधनों को तोड़कर पूरे हिंदू समुदाय को एक करने की बात करते हैं। वे हिंदू राष्ट्र का मुद्दा भी उठाते हैं, जो भगवा खेमे का प्रिय विषय रहा है। ऐसे में महागठबंधन की ओर से तुरंत यह आरोप लगाया जाने लगा कि पटना में बाबा बागेश्वर धाम का दरबार भाजपा प्रायोजित है।जिस तरह भाजपा नेता मनोज तिवारी ने बाबा बागेश्वर को पटना एयरपोर्ट पर स्वागत किया और उनके वाहन को चलाकर दरबार तक लाए, उससे ये आरोप और भी मजबूत हो गए। रही सही कसर तब पूरी हो गई जब केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद और बिहार के अन्य भाजपा नेता बाबा की आरती उतारते हुए दिखाई पड़े।
जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल की महागठबंधन सरकार बिहार में जातिगत समीकरणों के सहारे ही भाजपा को चुनौती देने की रणनीति बना रही है। जातिगत जनगणना के मुद्दे को हवा देकर नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव में अपनी पैठ मजबूत करने की कोशिशों में जुटे हैं। राहुल गांधी ने भी जिस तरह कर्नाटक चुनाव में जातिगत जनगणना को अपना समर्थन दिया है, माना जा रहा है कि 2024 में पीएम मोदी को रोकने के लिए यह विपक्ष का मजबूत हथियार हो सकता है। लेकिन बागेश्वर बाबा जिन मुद्दों को उठा रहे हैं, उनसे नीतीश-तेजस्वी और विपक्ष की इस राजनीति को नुकसान पहुंच सकता है। यही कारण है कि महागठबंधन के नेता इसका पुरजोर विरोध करते देखे जा रहे हैं। तेज प्रताप यादव तो अपनी सेना के सहारे बाबा को 'ठीक' करने और उन पर केस दर्ज कराने की चेतावनी तक दे चुके हैं। बाबा के दरबार में उमड़े आस्था के सैलाब को देखकर महागठबंधन ने उनके विरोध के स्वर कमजोर अवश्य कर लिया है, लेकिन बाबा के बुलावे के बाद भी तेजस्वी यादव उनके दरबार तक नहीं पहुंचे हैं।
भाजपा ने अपने हिंदू कार्ड के जरिए देश के अलग-अलग हिस्सों में अपनी पैठ बनाने में सफलता पाई है। उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री मोदी और बाबा योगी आदित्यनाथ के सहारे भाजपा ने अपना हिंदू कार्ड बहुत अच्छी तरह से खेला है। इसका असर चुनाव परिणामों पर साफ दिखाई पड़ रहा है। लेकिन यूपी के ही पड़ोसी राज्य बिहार में जातिगत राजनीति के आगे उसका यह दांव यहां कारगर नहीं हो पा रहा था।बाबा बागेश्वर सक्रिय राजनीति में नहीं हैं, लेकिन भाजपा को उम्मीद है कि वे महागठबंधन की जातिगत समीकरणों को कमजोर करने में उसकी सहायता कर पाएंगे और बिहार में भी उसका हिंदू कार्ड चल जाएगा। यही कारण है कि पटना के बाद मुजफ्फरपुर में भी बाबा का दरबार लगाने की तैयारी शुरू हो गई है।
बिहार भाजपा नेता जयराम विप्लव ने कहा कि बाबा बागेश्वर पूरे समाज की एकता की बात करते हैं। ऐसे में उनसे परेशानी केवल उन्हीं लोगों को हो रही है, जो समाज को जाति के नाम पर तोड़कर अपनी राजनीति करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि बाबा बागेश्वर देश के अलग-अलग हिस्सों में पहले भी दरबार लगाते रहे हैं, ऐसे में उनके पटना दरबार को किसी पार्टी से जोड़कर देखना गलत है।
उन्होंने कहा कि चुनाव के समय राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव जैसे नेता मंदिर-मंदिर जाकर स्वयं को बड़ा हिंदू दिखाने की कोशिश करते हैं। यदि वे पटना दरबार आकर बाबा बागेश्वर का आशीर्वाद लें तो यह उनके लिए भी अच्छा होगा।
नीतीश विचार मंच के नेशनल कन्वेनर सत्य प्रकाश मिश्रा ने कहा कि
बिहार में बीजेपी के विरोध नेताओं का कहना है कि कि भाजपा ने पहले रामदेव और श्रीश्री रविशंकर का इस्तेमाल किया, अब नए मौसम में बाबा बागेश्वर का इस्तेमाल कर रही है। कर्नाटक चुनाव ने बता दिया है कि भाजपा के पास विकास के नाम पर देने के लिए कुछ नहीं है, यही कारण है कि वह बाबा के नाम पर अपनी जमीन बचाए रखने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि एक संवैधानिक पद पर बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार या तेजस्वी यादव वही बात कर रहे हैं जिसे उन्हें करना चाहिए।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता डॉ. नवल किशोर ने कहा कि बाबा बागेश्वर धाम के दरबार में आने वाली जनता 'चमत्कार और उपचार' की उम्मीद में आ रही है। लोग अपने घर जाने के बाद भाजपा के एजेंडे की चर्चा नहीं करेंगे, बल्कि वे भक्ति भावना की बात ही करेंगे। ऐसे में उन्हें नहीं लगता है कि बाबा बागेश्वर के आने से बिहार की राजनीति में कोई बदलाव आएगा। उन्होंने कहा कि बाबा अपनी सभाओं में हनुमान कथा करते हैं, तो इससे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यदि वे उन मुद्दों को उठाते हैं जो कोई दूसरा राजनीतिक दल उठाता रहा है तो ऐसे में उनके ऊपर संदेह पैदा होता है।
आरजेडी और बीजेपी कुछ भी दावे करें लेकिन बिहार के लोगों की राजनीति चेतना बहुत अच्छी है। देश में जितनी भी सियासी क्रांतियां हुईं हैं, बिहार उसमें बढ़ चढ़कर भाग लेता रहा है। ऐसे में बाबा बागेश्वर हिन्दुत्व की अलख जगाने में कामयाबी जरूर पा सकते हैं, लेकिन सियासी ज़मीन बदलने के लिए बहुत संघर्ष करना पड़ेगा।