दीपावली के 11 दिन बाद पहाड़ में क्यों मनाते हैं इगास बग्वाल ?
ईगास-बग्वाल के दिन आतिशबाजी के बजाय भैलो खेलने की परंपरा है। बग्वाल वाले दिन भैलो खेलने की परंपरा पहाड़ में सदियों पुरानी है। भैलो को चीड़ की लकड़ी और तार या रस्सी से तैयार किया जाता है। चीड़ की लकड़ियों की छोटी-छोटी गांठ एक रस्सी से बांधी जाती है। इसके बाद गांव के ऊंचे स्थान पर पहुंच कर लोग भैलो को आग लगाते हैं। इसे खेलने वाले रस्सी को पकड़कर उसे अपने सिर के ऊपर से घुमाते हुए नृत्य करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी सभी के कष्टों को दूर करने के साथ सुख-समृद्धि देती है। भैलो खेलते हुए कुछ गीत गाने, व्यंग्य-मजाक करने की परंपरा भी है।
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पौड़ी गढ़वाल सीट पर - अनिल बलूनी बनाम गणेश गोदियाल
1990 से पहले इस सीट पर कांग्रेस का एकक्षत्र राज रहा था, लेकिन उसके बाद इसे बीजेपी के मजबूत किले के तौर पर देखा जाने लगा है. बीजेपी नेता जनरल बीसी खंडूड़ी सबसे ज्यदा पांच बार यहां से सांसद बने। उन्होंने 1991 से लेकर 2014 तक लगातार इस सीट पर जीत हासिल की है.
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पिछली बार से कैसे अलग है इस बार का किसान आंदोलन, क्या मोदी जिम्मेदार हैं ?
इस बार आंदोलन की अगुवाई भारतीय किसान यूनियन (एकता-सिद्धूपुर) के मुखिया जगजीत सिंह डल्लेवाल कर रहे हैं। उनका साथ दे रही है किसान मजदूर संघर्ष कमेटी। इस कमेटी के अगुवा के तौर पर एक किसान नेता सरवन सिंह पंधेर का नाम सबसे आगे चल रहा है। इस कमेटी का कार्यक्षेत्र अमृतसर है हालांकि बाकी कई जिलों के किसान इनके साथ जुड़े हैं। ये संगठन 13 साल पुराना है और पिछले किसान आंदोलन में भी सक्रिय रहा था।
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राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा कामयाब क्यों नहीं हो पा रही ?
पूरा पूर्वोत्तर पार करके राहुल की भारत जोड़ो न्याय यात्रा कूच बिहार के जरिए बंगाल में प्रवेश कर गई। दो दिन की छुट्टी के दौरान राहुल गांधी के पास खासा वक्त होगा, कि आगे की रणनीति कैसे तय की जाए। यात्रा के रफ्तार न पकड़ पाने से परेशान राहुल गांधी ने पार्टी महासचिव और संचार विभाग के पूर्व प्रमुख रणदीप सुरजेवाला को बुलाया
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